धर्मसाहित्य उपवन
सच में ईश्वर कुछ नहीं कहता-ममता शर्मा
हम जो कुछ भी अपने आसपास क्रिएट करते हैं वो केवल अपने विचारों से करते हैं ईश्वर ने हम सबको एक ऐसी ऊर्जा के द्वारा बनाया है , हम उसी उर्जा का प्रतिरूप हैं हम केवल शरीर लेते हैं और वही ऊर्जा इस शरीर के विभिन्न अंगों द्वारा कार्य करती है। हम सब एक सफर पर निकले हैं हम सब का यह सफर है। फर्क इतना है कोई खुशी-खुशी इस सफर को काटता है और कोई दुखी होकर काटता है जबकि सुख और दुख दोनों ही भ्रामक हैं। हम अगर साक्षी बन कर देखें तो दुख दुख नहीं है सुख सुख नहीं है यह तो मात्र इस शरीर से जुड़ी हुई एक परिकल्पना है। अथार्थ इन दुख सुख का अहसास केवल हमारा शरीर करता है। शरीर से जुड़े अंग करते हैं चाहे उसमें हमारा हृदय शामिल हो, चाहे हमारा मस्तिष्क शामिल हो। हमारी ऊर्जा का इन परिकल्पना से कोई भी लेना देना नहीं है।
इसी ऊर्जा को हम प्राण ऊर्जा भी कह सकते हैं आत्मा भी कह सकते हैं।