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Global News 24×7 Present-महाराजा अग्रसेन जयंती Special- Day 1

“महाराजा अग्रसेन जयंती” अश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन धूम धाम से महाराजा अग्रसेन की याद में मनाई जाती है। नवरात्रि के पहले दिन अग्रसेन जयंती के रूप में मनाया जाता है। सम्पूर्ण वैश्य समुदाय इनको बड़े हर्ष उल्लास से मनाता है।

इनको “अग्रवाल समाज का जन्मदाता” कहा जाता है। “अग्रवाल समाज” की उत्पत्ति इनसे ही हुई है। महाराजा अग्रसेन महादानी, समाजवाद के प्रवर्तक, कर्मयोगी, लोकनायक, समाज सुधारक थे। उनके नाम पर देश भर में अनेक स्कूल, कॉलेज, धर्मशाला, अस्पताल, उद्द्यान, बनाये गये है।

महाराज अग्रसेन जी की लघु जीवनी

इनका जन्म द्वापर युग के अंत में और कलयुग की शुरुवात में आज से लगभग 5185 वर्ष पूर्व हुआ था। ये “अग्रोदय” नामक राज्य के महाराज थे जिसकी राजधानी अग्रोहा थी। ये बल्लभ गढ़ और आगरा के राजा बल्लभ के ज्येष्ठ पुत्र, शूरसेन के बड़े भाई थे।

बचपन से बहुत दयालु, न्यायप्रिय, प्रजा को प्यार करने वाले, शांतिप्रिय, धार्मिक प्रवृति के, हिंसा का विरोध करने वाले, बलि प्रथा के विरोधी थे। ये जीव जानवरों से बहुत प्यार करते थे।

महाराजा अग्रसेन का विवाह

महाराजा अग्रसेन ने राजा नागराज कुमूद की बेटी माधवी के स्वयंवर में भाग लिया था। माधवी बेहद रूपवान और गुणवान कन्या था। उससे विवाह करने के लिए इंद्र और दूसरे देवता भी स्वयंवर में आये थे। सभी माधवी से विवाह को इक्छुक थे पर उसने महाराजा अग्रसेन से विवाह किया।

इंद्र ने बदला लिया और प्रतापनगर में बारिश नही की। अकाल पड़ गया। महाराजा अग्रसेन इंद्र से युद्ध को तैयार हो गये पर नारद ने विवाद को शांत किया।

महाराजा अग्रसेन की तपस्या

महाराजा अग्रसेन ने अपने राज्य की खुशहाली के लिए काशी (बनारस) जाकर भगवान शिव की तपस्या की थी। शिव ने उनको  दर्शन दिया और माँ लक्ष्मी की तपस्या करने की सलाह दी। फिर महाराजा अग्रसेन ने माँ लक्ष्मी की तपस्या करके उनको प्रसन्न कर दिया। माँ लक्ष्मी ने उनको एक नया राज्य बनाने को कहा और प्रजा की देखभाल करने को कहा।

श्री अग्रसेन महाराज आरती

जय श्री अग्र हरे, स्वामी जय श्री अग्र हरे।
कोटि कोटि नत मस्तक, सादर नमन करें।। जय श्री।
आश्विन शुक्ल एकं, नृप वल्लभ जय।
अग्र वंश संस्थापक, नागवंश ब्याहे।। जय श्री।
केसरिया थ्वज फहरे, छात्र चवंर धारे।
झांझ, नफीरी नौबत बाजत तब द्वारे।। जय श्री।
अग्रोहा राजधानी, इंद्र शरण आये!
गोत्र अट्ठारह अनुपम, चारण गुंड गाये।। जय श्री।
सत्य, अहिंसा पालक, न्याय, नीति, समता!
ईंट, रूपए की रीति, प्रकट करे ममता।। जय श्री।
ब्रहम्मा, विष्णु, शंकर, वर सिंहनी दीन्हा।।
कुल देवी महामाया, वैश्य करम कीन्हा।। जय श्री।
अग्रसेन जी की आरती, जो कोई नर गाये!
कहत त्रिलोक विनय से सुख संम्पति पाए।। जय श्री!

महाराजा अग्रसेन जी की और अधिक जानकारी के लिए जुड़े रहे हमसे, हम कल फिर लौटेंगे भाग 2 के साथ

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