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धर्म

वास्तु जाने और सीखे – भाग ५ वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल जी से

सूत जी ऋषियों से वास्तु चक्र के बहार के देवताओ के नाम बताते है। आज वास्तु चक्र के बहार के देवताओ के नाम जानेंगे।

सूत जी कहते है –
नामतस्तान् प्रवक्ष्या स्थान च निबोधत।
ईशानकोणादिषु तान् पूजयेद्धविषा नरः ॥ २३
अर्थात -मैं उनके नाम और स्थान बतला रहा हूँ, आपलोग सुनिये।
मनुष्य को ईशान आदि कोणोंमें हविष्यद्वारा उन-उन देवताओंकी पूजा करनी चाहिये।

पूषा शिखी चैवाथ पर्जन्यो जयन्तः कुलिशायुधः ।
सूर्यसत्यों भृशश्चैव आकाशो वायुरेव च ॥ २४
अर्थात –
पूसा, शिखी, पर्जन्य, जयंत और कुलिशयुध।
सूर्य , सत्य, भृश, अन्तरिक्ष, वायु, पूषा।।

च वितथश्चैव बृहत्क्षतयमावुभौ ।
गन्धर्वो भृङ्गराजश्च मृगः पितृगणस्तथा ॥ २५
अर्थात – वितथ, बृहत्क्षत, यम।
गन्धर्व, भृङ्गराज, मृग, पितृगण।।

दौवारिकोऽथ सुग्रीवः पुष्पदन्तो जलाधिपः ।
असुरः शोषपापौ च रोगोऽहिमुख्य एव च ॥ २६
अर्थात – दौवारिक, सुग्रीव, पुष्पदन्त, जलाधिप।।
असुर, शोष, पाप, रोग, अहि, मुख्य।।

भल्लाटः सोमसप च अदितिश्च दितिस्तथा ।
बहिर्द्वात्रिंशदेते तु तदन्तस्तु ततः शृणु ॥ २७
अर्थात – भल्लाट, सोम, सर्प, अदिति और दिति।।
ये बत्तीस बाह्य देवता हैं। अब वास्तु चक्रके भीतरी देवताओंके नाम सुनते है।।

वास्तु चक्र के देवता के उलंघन से व्यक्ति पापी , दुराचारी , स्मगलर, क्रिमिनल, तानाशाह तक बन सकता है। घर में अकस्मात् मृत्यु, सरकारी दंड, क़ानूनी मुक़दमे, घर का बटवारा, विकलांगता तक का सामना करना पड़ सकता है।

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