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धर्म

देवोत्थानी एकादशी से जुडी पौराणिक कथा ,जानते है सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल जी से 

४ नवंबर को है देवोत्थानी एकादशी।

तीज त्योहारो की अपनी एक महत्ता है। तीज त्योहारो से जुडी पौराणिक कथाये भी है। ऐसी ही एकादशी की पौराणिक कथा है। एक राजा के राज्य में सभी प्रजाजन एकादशी का व्रत रखते थे। सभी व्रत के दिन फलाहार करते थे। राज्य में इस व्रत के दिन कोई भी व्यापारी अन्न नहीं बेचता था। राजा की परीक्षा लेने की नीयत से एक बार भगवान् ने एक सुंदर स्त्री का रूप धारण किया और देश में राज मार्ग के किनारे जाकर बैठ गए। जब राजा उधर से गुजरे तो उन्होंने एक सुंदरी को उदास भाव में राजमार्ग के किनारे बैठे देखा। राजा को पहली ही नजर में उस स्त्री का रूप भा गया। राजा ने स्त्री के साथ विवाह का प्रस्ताव रखखा । इस पर सुंदरी ने अपनी शर्त रखी की राज्य का संपूर्ण अधिकार उसे दे दिया जाएं और जो भोजन वो राजा के लिए बनाएगी उसे राजा खाएंगे। सुंदरी के रूप पर मोहित राजा ने उसकी शर्तें स्वीकार कर लीं। जब एकादशी का दिन आया, तो रानी ने बजारों में रोजाना की तरह ही अन्न बेचने का आदेश दिया और घर पर मांसाहारी चीजें पका कर राजा को खाने के लिए दीं। इस पर राजा ने कहा- ‘आज एकादशी के दिन मैं तो केवल फलाहार ही करूंगा तब रानी ने राजा को शर्त की याद दिलाकर कहा कि यदि तुम मेरा बनाया खाना नहीं खाओगे, तो मैं बड़े राजकुमार का सिर काट डालूंगी। बड़ी रानी ने राजा को अपना धर्म निभाने की सलाह दी और कहा कि – स्वामी ! पुत्र तो आपको फिर भी मिल जाएगा, लेकिन धर्म नहीं मिलेगा।” राजकुमार को जब सारी बात मालूम हुई तो वह पिता के धर्म की रक्षा के लिए अपना सिर कटाने को तैयार हो गया। इस बीच रानी का रूप त्याग कर भगवान् विष्णु ने प्रकट होकर कहा – “राजन्! तुम मेरी परीक्षा में सफल रहे, इसलिए कोई वर मांग लो।”

 

राजा ने कहा—“भगवन्! आपका दिया हुआ सब कुछ तो मेरे पास है। मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस, मेरा उद्धार कर दीजिए।” इतना कहना था कि वहां राजा को ले जाने के लिए देवलोक से रथ आ पहुंचा। तब राजा ने राज्य का पूरा भार अपने पुत्र को सौंपा और स्वयं उस विमान में बैठकर देवलोक चले गए

शास्त्रों में वर्णित है कि भादों मास की एकादशी को भगवान् विष्णु द्वारा शंखासुर नामक महाबली राक्षस को मारने में बड़ा परिश्रम करना पड़ा था। इसलिए वे विश्राम करने के लिए क्षीर सागर में शेष शय्या पर जाकर सो गए थे। इस समय शुभ कार्यों की शुरुआत, विवाह, उपनयन, गृहप्रवेश आदि को करना वर्जित हो जाता है। ४ महीने की निद्रा के पश्चात, कार्तिक शुक्ल एकादशी को देवोत्थानी एकादशी के बाद भगवान् जागते हैं। सारे मांगलिक कार्य इसी दिन से आरंभ किए जाते हैं। भगवन को उठाने के लिए पहले तो भक्त मंत्रोचारण करते है फिर उसके बाद पुष्पांजलि करके फलाहार करते है । मंत्र -उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते। वाराह त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम् ॥ उत्तिष्ठोत्तिष्ठ दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे हिरण्याक्षप्राणघातिन् त्रैलोक्ये मङ्गलं कुरु ॥

अर्थात – उठो, उठो, गोविंदा, ब्रह्मांड के भगवान, नींद छोड़ दो। हे वराह, ब्रह्मांड के भगवान, जब आप सो रहे होते हैं, तो पूरा ब्रह्मांड सो जाता है। हे हिरण्यकक्ष के जीवन के हत्यारे, जिसके नुकीले नुकीले ने पृथ्वी को उठा लिया है, कृपया उठो। कृपया तीनों लोकों पर शुभता प्रदान करें। अंत में निम्न मंत्र से भगवन की कृपा की प्रार्थना की जाती है। मंत्र -इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता । त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना ॥ इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो । न्यूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादाज्जनार्दन ॥

अर्थात – हे भगवान, यह द्वादशी दिवस जागृति के लिए बनाया गया है। आप अकेले हैं जो सभी दुनिया के कल्याण के लिए झूठ बोलते हैं। हे प्रभु, मैंने आपको प्रसन्न करने के लिए यह व्रत किया है। हे जनार्दन, आपकी कृपा से जो कुछ कम है वह पूर्ण हो।

प्रस्तुति मुख्य संपादक ओम प्रकाश गोयल

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