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साहित्य उपवन

कस्बे की बर्बादी ,बुजुर्गों की जुबानी

कस्बे की बर्बादी ,बुजुर्गों की जुबानी

व्यंग

प्रिय मित्रों चाय की चुस्की के साथ हमारे कस्बे के सम्मानित बुजुर्ग की जुबानी व्यंगात्मक कहानी सुनने जो कुछ ना कुछ कहती है सुनिए यह कहानी,

(यह किसी की भावना को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं है हां विचार करने योग्य जरूर लगती है) चले बुजुर्ग की वाणी से कथा सुनते हैं, जो इस प्रकार है

एक बार रात्रि में , कस्बा के ऊपर से एक हंस हंसिनी का जोड़ा उड़ कर अपने घर वापस लौट रहा था कस्बा को उजड़ता हुआ देख हंसिनी ने हंस से कहा कि यह कस्बा क्यों उजड़ रहा है हंस हंसिनी को चुप रहने को कहते हुए कहता है कि नीचे बरगद के पेड़ पर उल्लू बैठा हुआ है सुन लेगा,

उल्लू हंस की बात सुन लेता है और उससे बात अच्छी नहीं लगी और पेड़ से उड़ान भरकर हंस के जोड़े को अपने पास रात्रि विश्राम के लिए बुला लेता है ,और मेहमान की तरह पूरी सेवा करता है हंस का जोड़ा उसके सेवा से बहुत खुश होता है प्रातः हंस हंसिनी का जोड़ा उड़ान भरता है तो उल्लू उसको रोक लेता है और कहता है कि इस हंसिनी को कहां ले चले यह तो मेरी है हंस बड़े सोच में पड़ा उसने बहुत विनती की और कहा उल्लू महाराज हंसिनी तो हंस की होती है यह तो मेरी जीवन साथी है हमें चलने दो,

उल्लू नहीं माना उसने कहा चलिए आपकी एक बात मैं मान लेता हूं आप , कस्बा से कुछ जिम्मेदार समाजसेवी ,राजनीतिक , व अपने अपने समाज के मुखियाओं को बुला लाओ यदि वह हंसिनी आपकी बताते हैं तो आप ले जाना हंस को उनकी बात सुनकर , खुशी हुई ,व कस्बा से सभी समाज से जिम्मेदार लोगों को बुलाकर ले आया ,

मंदिर पर पंचायत होती है उल्लू से कहा जाता है आप भी अपने पंच बुला लो उल्लू ने कहा कि आप ही मेरे पंच हैं मुझे किसी पंच की आवश्यकता नहीं है जो फैसला आप दे देंगे वह मुझे मंजूर है उल्लू की बात सुनकर पंचायत में से पांच आदमी चुने जाते हैं और उन्हें मंदिर में फैसला तय करके लाने को कहा जाता है पंच मंदिर में आपस में बातचीत कर फैसला देते हैं कि यह हंस और हंसिनी तो भले और सज्जन है ,और चले जाएंगे यदि हम उल्लू के खिलाफ फैसला देते हैं तो उल्लू हमें जीने नहीं देगा इसलिए हंसिनी उल्लू को ही दे दी जाए,

पंच मंदिर से बाहर आते हैं और अपना फैसला सुनाते हुए हंसिनी को उल्लू को देने की बात कहते , हुए उल्लू को हंसिनी सौंप देते हैं

हंस रोता हुआ उड़ान भरता है उल्लू भी पीछे से उड़ान भरता है उस हंस को वापस लाता है और बोलता है कि रात जब आप उड़ान भर रहे थे तो हंसिनी से क्या कह रहे थे वह शब्द मैंने सुन लिए थे ,क्या कभी हंसिनी उल्लू की हुई है जो मेरी होगी ,

हंसिनी हंस की होती है इसलिए आपकी ही रहेगी मैंने तो आपकी बात सुन आपको रोका ,

जिस कस्बे में इंसाफ ना होता हो वह कस्बा उजड़ता ही है ,खुशाल नहीं होता आप का आरोप मुझ पर गलत था इस उजड़ने के पीछे मैं दोषी नहीं बल्कि यहां के जिम्मेदार लोग हैं, उल्लू अपनी बात कह कर हंस हंसिनी के जोड़े को सह सम्मान जाने देता है |,

ओम प्रकाश गोयल मुख्य संपादक ग्लोबल न्यूज 24×7 की कलम से

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