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एक रूपया व एक ईट

एक रूपया व एक ईट:- अग्र -वैश्य समाज की गौरव गाथा , भाग 2

एक रूपया व एक ईट:- अग्र -वैश्य समाज की गौरव गाथा , भाग 2

जिस समाज का अपना इतिहास नहीं होता है, वह समाज कभी शासक नहीं बन पता है, क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति पैदा होती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ही ताकत बनती है ,ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से ही तो शासक बना जाता है ,बिना शक्ति के कोई शासक बन ही नहीं सकता |

वैश्य जाति का इतिहास गौरवमयी ,ऐश्वर्यमयी, वैभवमयी, आलोकमयी एवं प्रकाशमयी है | अपने गौरवमयी इतिहास का हमें ज्ञान होना चाहिए कि आज से लगभग इक्यावन सौ वर्ष पूर्व महाराजा अग्रसेन ने एक सुव्यवस्थित राज्य का आदर्श स्वरूप इस देश को प्रदान किया | उन्होंने एक जनहितकारी राज्य की अवधारणा को मूर्त रूप दिया तथा एक आदर्श की स्थापना करके संपूर्ण विश्व के सम्मुख एक “मॉडल राज्य” प्रस्तुत किया |

इस राष्ट्र के परिप्रेक्ष्य में महाराजा अग्रसेन ने तत्कालीन बिखरी हुई राष्ट्रीय शक्तियों और जातीय स्फुर्लिंगों को समेटा -बटोरा ,पुष्पित- पल्लवित तथा एकत्रित किया और उनको चिरकाल के लिए सशक्त राष्ट्रीयता के सूत्र में आबध्द कर दिया | देश की एकता अखंडता शांति और समृद्धि के न्यू महाराजा अग्रसेन जी ने जो आदर्श उपस्थित किए उसके लिए वे फिर वंदनीय रहेंगे इसलिए आज भी वे संपूर्ण वैश्य जाति के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं |

  • हम श्रेष्ठ पुरुष हैं इसीलिए ,हम श्रेष्ठ कहलाते हैं|
  • हम औरों को अमृत पिलवाते, स्वयं जहर पी जाते हैं |
  • सहते- सहते भार सभी का, हम स्वयं धरा बन जाते हैं |
  • भारत माता की आन -बान हित, अपना शीश कटाते हैं |   
  • हम औरों को अमृत पिलवाते, स्वयं जहर पी जाते हैं |
  • हम अग्रसेन के वंशज हैं, इसलिए हम अग्र-वैश्य कहलाते हैं |

गुप्तकाल भारतीय इतिहास का स्वर्ण काल महाराजा चंद्रगुप्त प्रथम ने इसकी नींव डाली और इसमें समुद्रगुप्त चंद्रगुप्त विक्रमादित्य कुमारगुप्त स्कंद गुप्त से गुप्त नरसिंह गुप्त जैसे प्रतापी राजा हुए हैं इस वंश में लगभग 300 वर्ष तक राज्य किया यह काल भारतीय इतिहास का स्वर्ण काल माना जाता है गुप्त काल के यह महान नरेश हमारे लिए आज भी प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं|

वर्धन काल वर्धन वंश में अनेक प्रतापी राजा हुए हैं लेकिन महाराजा वर्धन इनमें सबसे प्रतापी राजा हुए हैं,|इसकी दानवीरता की प्रशंसा इतिहास के स्वर्णिम प्रष्ठों में आज भी अंकित है तथा ये आज भी हमारे प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं |

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