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राष्ट्रीय

मौलाना मदनी की चेतावनी को भारत गंभीरता से समझे

मौलाना मदनी की चेतावनी को भारत गंभीरता से समझे - दिव्य अग्रवाल 

जमीयत उलेमा ऐ हिन्द के मौलाना मदनी के वक्तव्य को समझने के लिए हिंदुस्तानियों को वास्तविक इतिहास को खंगालना होगा। क्यूंकि जो समाज इतिहास से कुछ सीख नहीं लेता इतिहास उस समाज के साथ निश्चित ही दोहराया जाता है। भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद ने देश के बंटवारे पर स्पष्ट कहा था हम बंटवारा नहीं चाहते , हम जिन्ना को नहीं मानते क्यूंकि अंग्रेजो से पहले इस धरती पर हमारा साशन था हम भारत को इस तरह नहीं छोड़ सकते एवं भारत के मुसलमान को इस ओर प्रयासरत रहना होगा। आज मौलाना मदनी कह रहे हैं की जो हमारे मजहब को नहीं मानता वो कहीं ओर चला जाए ,यह देश छोड़कर चला जाए अर्थात यह देश उनका है। मौलाना यह भी कह रहे हैं की मुस्लिम समाज शरीयत से चलेगा शरीयत ही उसका संविधान है देवबंद केअधिवेशन में यहाँ तक चेतावनी दी गयी यदि सरकार नहीं झुकी तो देश बर्बाद हो जाएगा।   क्या माननीय सर्वोच्च न्यायालय इन

दिव्य अग्रवाल
दिव्य अग्रवाल(राष्ट्रवादी लेखक व विचारक, गाजियाबाद)

मौलानाओ के बयानों का स्वतः संज्ञान लेते हुए राष्ट्र अश्मिता की अवमानना एवं  देश द्रोह के सम्वबंध में कोई कार्यवाही करेगा। वर्तमान परिस्थितियों के परिपेक्ष में देश  को यह भी जानना चाहिए की अंग्रेजों से आजादी के नाम पर इसी तरह की तकरीरों के साथ खिलाफत आंदोलन शुरू हुआ था। जिसमें भारत का हिन्दू समाज गांधी जी व नेहरू जी पर विश्वास करते हुए अहिंसा परमो धर्म के सिद्धांत पर चल रहा था परन्तु मुस्लिम समाज को अंग्रेजों से आजाद भारत नहीं अपितु मुगलिया भारत का शासन चाहिए था ।  अतः आज भी मुस्लिम समाज इस देश को सिर्फ अपना देश समझता है हिंदुओं का देश नहीं । इसी कारण आजादी के समय हिन्दू समाज का वीभत्स नरसंघार हुआ  एवं राजनेताओ ने शान्ति स्थापना हेतु मुसलमानो को एक नया मुल्क बनाकर दे दिया था । भारत कोशायद स्मरण नहीं होगा वर्ष 2018 में मौलाना मदनी ने जमीयत यूथ क्लब का गठन किया था । जिसका लक्ष्य वर्ष 2028 तक सवा करोड़ मुलिम कमांडो तैयार करना था क्या यह लक्ष्य 2028 से पूर्व ही पूर्ण हो चूका है। जिसके दम पर देश के बर्बाद होने से लेकर भारत का मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं अपितु देश की दूसरी बड़ी आबादी होने तक की चेतावनी दी जा रही है।   इस गंभीर विषय पर भारत के सभ्य समाज को राजनितिक चश्मे के स्थान पर समाजिक स्तर पर सोचना होगा अन्यथा जमीयत उलमा ऐ हिन्द जैसे संगठनों की चेतावनी को सार्थक होने से रोक पाना लगभग असम्भव हो जाएगा।

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