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एक रूपया व एक ईट

श्री महाराजा अग्रसेन जी की जयंती पर ग्लोबल न्यूज़ 24×7 की विशेष प्रस्तुति

श्री महाराजा अग्रसेन जी की जयंती पर ग्लोबल न्यूज़ 24×7 की विशेष प्रस्तुति

महाराजा अग्रसेन एक ऐतिहासिक पुरूष थे। उनका जन्म महाभारत युद्ध के पूर्व हुआ था। महाभारत युद्ध के पश्चात् देश की डाँवाडोल राजनैतिक परिस्थितियों में अनेक छोटे-छोटे राज्यों का उदय हुआ था। उन्हीं नवोदित राज्यों में महाराजा अग्रसेन का अग्रोहा गणराज्य भी था। इनके छोटे भाई का नाम शूरसेन था। दोनों ही भाई बल, विद्या, बुद्धि तथा रण कौशल में अद्वितीय योद्धा थे। उन्होंने अपने राज्य की स्थापना अपने पराक्रम से की थी। ये सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा थे। लेकिन महाराजा अग्रसेन द्वारा अट्ठारहवें यज्ञ में बलि न देने के कारण वैश्य धर्म स्वीकार करके, क्षत्रिय से वैश्य बने। अपनी सूझ-बूझ तथा तपस्या और लगन से क्षत्रियों के समान ही वैश्य गणराज्य की स्थापना की थी और वैश्यों में इस गणराज्य की रक्षा हेतु क्षत्रियोचित गुणों एवं कर्मों को उत्पन्न करके, एक विशाल गणराज्य के महान शासक बने। उन्होंने शिव और लक्ष्मी की आराधना करके देवी शक्ति प्राप्त की। उन्होंने शिव की तपस्या से शक्ति तथा लक्ष्मी की आराधना से धन की प्राप्ति की थी, क्योंकि उन्हें अपने गणराज्य की वृद्धि हेतु शक्ति एवं धन दोनों की ही आवश्यकता थी। उन्होंने नागवंश से वैवाहिक सम्बन्ध जोड़कर अपनी राज्य शक्ति को और अधिक सुदृढ़ बनाया अपनी राजधानी अग्रोहा को ऐसे स्थान पर बनाया था, जहाँ पर चारों ओर मरूस्थल था तथा चारों ओर कटीली झाड़ियों के जंगल थे। वहाँ पर दूर-दूर तक पानी का नामोनिशान तक नहीं था। लेकिन यह स्थान सुरक्षा की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं उपयुक्त था, ताकि वहाँ पर कोई आक्रमणकारी जल्दी पहुँचने का साहस न कर सके। उन्होंने स्वयं अपने राज्य में बड़े-बड़े तालाबों का निर्माण कराया।

भारत मां के प्रांगण में, देशभक्ति के दीप जले ।तूफानों में बुझ न सके जो, ऐसे अद्भुत दीप जले ।।

उन्होंने अपने राज्य का विस्तार करके इसमें हिसार, हॉसी, तोसाम, सिरसा, नारनौल, रोहतक, पानीपते, दिल्ली,जीद, कैथल, मेरठ, सहारनपुर, जगाधरी, विधि नगर, नाभा, अमृतसर, अलवर,उदयपुर तक फैलाया था। इन अट्ठारह नगरों में उन्होंने पंचायती राज्य की नीव डाली थी तथा सभी व्यक्तियों में समन्वयवाद और समरसता की भावना को विकसित किया और सम्पूर्ण वैश्य समाज को उच्चतम प्रतिष्ठा के गौरबमयो स्थान पर प्रतिष्ठापित किया। उनके राज्य में यदि कोई व्यक्ति बाहर से आता था, तो उसे एक मुद्रा तथा एक ईंट प्रत्येक परिवार द्वारा दी जाती थी। इससे वह आगन्तुक व्यक्ति एक मुद्रा से लखपति बन जाता था तथा एक ईंट से अपना मकान बनाकर गृहपति बन जाता था। यह उनकी आज से लगभग 5145 वर्ष पूर्व की समाजवादी व्यवस्था का उच्चतम आदर्श स्वरूप था। ऐसे सुदृढ़ संस्कार युक्त, धार्मिक, समन्वयवादी एवं समरसतावादी तथा समाजवादी राज्य की स्थापना का दूसरा उदाहरण विश्व में दुर्लभ है।

समाजवाद का दीप जलाया,अग्रोहा के आंगन में। समरसता का भाव जगाया, भारत मां के प्रांगण में। इस दीपक को खून से सींचा, अग्रसेन महाराज ने।
धाराओं के प्रचण्ड प्रवाह में, वैश्य जाति के दीप जले। तूफानों में बुझ न सके जो, ऐसे अद्भुत दीप जले।।

अग्रसेन पहले वैश्य थे जिन्हें वैश्य होते हुए भी महाराजा की पदवी से विभूषित किया गया था। इससे पूर्व यह सम्मान केवल क्षत्रियों को ही दिया जाता था। महाराजा अग्रसेन को क्षत्रियों की भाँति छत्र एवं चंवर रखने की अनुमति भी दी गई थी। उन्होंने सम्पूर्ण वैश्य जाति को एक सूत्र में आबद्ध करने हेतु अट्ठारह गोत्रों की स्थापना की। उस समय सम्पूर्ण वैश्य समाज अठारह उपजातियों में या18 कबीलों में बँटा हुआ था। उन सबको एक-एक गोत्र प्रदान करके, उन अट्ठारह उपजातियों को या 18 कबीलों को एक मंच पर लाकर, एक सूत्र मे आबद्ध कर दिया। उन्होंने रक्त शुद्धि के लिए यह परम्परा कायम कर दी कि कोई भी व्यक्ति स्वगोत्र में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित नहीं करेगा अर्थात अपने गोत्र को बचाकर दूसरे गोत्र में ही सभी व्यक्ति वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करेंगे। उन्होंने जाति से बाहर भी विवाह सम्बन्ध को निषिद्ध ठहराया था। इसी कारण वैश्य अग्रवाल जाति देश में धर्म और संस्कृति तथा शक्ति का अद्भुत केन्द्र रही।

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