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राष्ट्रीय

डेयरी उद्योग को बचाने के लिए जीएसटी का कम होना जरूरी

डेयरी उद्योग को बचाने के लिए जीएसटी का कम होना जरूरी, मिलावटखोरों के चलते डेयरी उद्योग प्रभावित - राजीव कुमार अग्रवाल

नई दिल्ली:- जलवायु परिवर्तन के चलते देश में लिक्विड दूध की काफी कमी हो गई है। दूसरी ओर मिलावटी माल धड़ल्ले से बिकने से डेरी उद्योग पूरी तरह तबाह हो चुका है, अतः इस उद्योग को बचाने के लिए मिलावट करने वाले पर सख्त कदम उठाने चाहिए। दूसरी ओर व्यापार को बढ़ाने के लिए देसी घी पर जीएसटी 12 से घटाकर 5 प्रतिशत करना ही एकमात्र उपाय है,

 

परम डेयरी लिमिटेड के चेयरमैन एवं मैनेजिंग डायरेक्टर राजीव कुमार
परम डेयरी लिमिटेड के चेयरमैन एवं मैनेजिंग डायरेक्टर राजीव कुमार

परम डेयरी लिमिटेड के चेयरमैन एवं मैनेजिंग डायरेक्टर राजीव कुमार ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के चलते विगत 2 वर्षों से देश में लिक्विड दूध का उत्पादन कम हो गया है। एक अनुमान के मुताबिक लिक्विड दूध का उत्पादन 2 वर्ष पहले तक 17 करोड़ मैट्रिक टन तक पहुंच गया था, जो विगत 2 वर्षों में 14.50 करोड़ मेट्रिक टन के आसपास रह जाने का अनुमान आ रहा है,

यही कारण है कि उत्तर भारत के दुग्ध उत्पादक प्लांटों में कच्चे दूध की आपूर्ति बहुत ही कमजोर रह गई, इसे देखते हुए नये देसी घी की काफी कमी हो गई है, जो बाजारों को घटने नहीं देंगे।

 

 

विगत 2 वर्षों से फेडरेशन के स्टॉक के माल मंडियों में सस्ते भाव के बिक रहे हैं जिसके चलते प्राइवेट सेक्टर के माल नहीं बिकने की स्थिति में भाव नीचे चल रहे हैं। वहीं कुछ और प्लान्टों ने उत्पादन शुरू कर दिया है, जिसके चलते खुर्जा, मेरठ, सहारनपुर, अलीगढ़, पिहोवा, करनाल, कासगंज, आगरा आदि सभी क्षेत्रों के प्लांटों में कच्चे दूध की आपूर्ति काफी कम रह गई, जिससे निर्माता कंपनियों को महंगा दूध खरीदना पड़ रहा है।

उत्तर भारत के सभी क्षेत्रों की कंपनियों में पुराना स्टाक लगभग समाप्त हो चुका है तथा फेडरेशन भी जो सस्ता माल बेच रहे थे, वो कंपनियां भी और घटाकर बेचने नहीं आ रही है। दक्षिण भारत की कंपनियों में भी देसी घी का स्टॉक ज्यादा नहीं बचा है, इन परिस्थितियों में आगे दिवाली एवं छठ पूजा के साथ-साथ नवंबर में शादियों की खपत को देखते हुए मंदे के आसार बिल्कुल दिखाई नहीं दे रहे है।

श्री राजीव कुमार ने बताया कि मिलावट का घी बेचने वालों से परेशानी जरूर है, यह माल बढ़िया देसी ही 30 प्लस आरएम वाले को बिकने नहीं दे रहे हैं, सरकार द्वारा इसे रोकना अति आवश्यक है, अन्यथा किसानों को उचित पैसे नहीं मिलने पर दुधारू पशु कट जाएंगे। दूसरी ओर देसी घी पर 12 प्रतिशत जीएसटी लगने से लोकल एवं चालानी का व्यापार काफी कम रह गया है। पहले इस पर 5 प्रतिशत वैट लगता था, जो सरकार द्वारा जीएसटी में परिवर्तित करने के बाद इस पर बढ़ाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया है,

जबकि इसी के सेम उत्पाद दूध पाउडर पर 5 जीएसटी लगता है, अतः सरकार को दोनों पर समान 5 प्रतिशत जीएसटी कर देना चाहिए, इससे सरकार को राजस्व निश्चित रूप में अधिक मिलेगा तथा मिलावट पर भी शिकंजा कसा जाएगा एवं डेयरी उद्योग में काम बढ़ेगा, इससे पशुपालक किसान लाभान्वित होंगे,

कच्चे दूध की कमी से नया देसी घी आर्डर के अनुसार भी प्लांटों में नहीं बना पा रहे हैं, जिससे बाजार में मंदी की गुंजाइश नहीं है,

कंपनियों में नए माल के आर्डर पड़े हुए हैं, लेकिन लिक्विड दूध42 रुपए प्रति लीटर में भी नहीं मिलने से उत्पादन खपत के अनुरूप प्लांटों में नहीं बन रहा है, जिससे बाजार अभी और बढ़ सकता है। दूध पाउडर में भी दिवाली तक मंदा नहीं लग रहा है, क्योंकि लिक्विड दूध प्लांटों में न पहुंचकर मावा निर्माताओं के पास खप रहा है।

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