एक रूपया व एक ईट
एक रूपया व एक ईट:- अग्र -वैश्य समाज की गौरव गाथा , भाग 10
मानवतावादी एवं करूणामयी दृष्टिकोण
वैश्य जाति मानवतावादी जाति है तथा उसके हृदय में करूणा की भावना सदैव ही प्रवाहित होती रहती है, दिल्ली के सेठ उत्तम प्रकाश बंसल जाड़ों में 100 कम्बल 100 रजाईयाॅं अपने घर पर मॅंगा लेते थे तथा प्रतिदिन सुबह 4 बजे घोड़े तांगे में बैठकर, चौराहों पर, स्टेशन पर, बस अड्डे पर जाकर देखते थे कि कौन व्यक्ति जाड़े में सिकुड़ा, हुआ सो रहा हैउसके ऊपर लिहाफ उड़ा देते थे, किसी के पास देखते की फटे कंबल में सोया हुआ है उसके ऊपर नया कंबल डाल देते थे ,जब उत्तम प्रकाश पैदा हुए, तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई थी ,वह वजन तोलने वाली मशीन को लेकर स्टेशन के बाहर बैठ जाते थे तथा वजन तोल कर अपना गुजारा करते थे ,लेकिन जब वे मरे तब वे करोड़पति थे,
इसी प्रकार मेरठ में सेठ अमीचन्द जी जाड़ों में प्रातः 4 बजे उठकर शहर के विभिन्न मोहल्लों में घूमते थे तथा यह देखते थे कि कौन सिकुड़ा हुआ सो रहा है ,उसके ऊपर लिहाफ या कंबल डाल कर चले आते थे सोने वाले व्यक्ति को तो पता ही नहीं चलता था कि कौन डालकर चला गया? वह सुबह उठकर यही कहता कि रात्रि में कोई भगवान आया होगा और चुपचाप डालकर चला गया होगा, उन्हीं के बेटे अरूण जैन जी थे जो कि मेरठ में प्रथम मेयर बने,
इसी प्रकार की घटना सरधने के पास के एक गाँव की है , वहां भगवाना नाम का एक हरिजन रहता था, उसकी दो बेटियों की शादी तय हो गयी थी, शादी का दिन पास आ गया, लेकिन उसके पास व्यवस्था कुछ भी नहीं हो पायी थी, वह गाँव के बाहर आकर पेड़ पर चढ़ गया, नीचे खड़े लोगों ने पूछा कि पेड़ पर चढ़ रहा है? उसने कहा कि मैं भगवान को देख रहा हूँ। कहते है कि शादी के तीन दिन पहले भगवान आता है मेरे तो शादी के तीन दिन रह गये है, मैं पेड़ पर चढ़कर भगवान को देख रहा हूँ कि किधर से भगवान आयेगा गाँव में लाला बुद्ध प्रकाश जो रहते थे, किसी ने उन्हें इसके बारे में बता दिया वे दौडे़ हुए आये, उन्होंने भगवाना को कहा नीचे उतर आओ, भगवाना ने कहा कि जब भगवान आयेंगे, तभी मैं नीचे उतरूगां, वहाँ उपस्थित लोगों ने कहा कि अरे बावले भगवान आ गये हैं, तू जल्दी उतर कर उनके दर्शन कर ले, भगवाना नीचे आ गया, सेठ बुद्ध प्रकाश ने उन्हें शादी का सारा सामान दिला दिया और कहा कि ये दोनों मेरी बेटियाँ हैं। मैं ही इनका कन्यादान करूंगा,
सभी लोग सेठ बुद्ध प्रकाश की जय-जयकार करने लगे, बाद में सेठ बुद्ध प्रकाश जी सरधने में आकर रहने लगे थे,
ऐसी ही एक कथा सेठ गोविन्द दास की आती है, जबलपुर में रात को कर्फ्यू लग जाता था तथा दिन में हट जाता था, एक मुस्लिम जन मिस्टर खान, अपने रिश्तेदार को स्टेशन छोड़ने आये, लेकिन लौटने में देर हो गई, कर्फ्यू का समय हो गया, अब वे क्या करें? वे एक गली में मुड़ गये, वहाँ उन्हें एक व्यक्ति माथे पर तिलक लगाये दिखाई दिया। तिलकधारी व्यक्ति, खाँ साहब की परेशानी को समझ चुके थे, उन्होंने खान साहब से कहा कि आप बिल्कुल चिन्ता न करें, रात भर यहीं विश्राम करो, सुबह को कर्फ्यू उठ जायेगा, उठते ही घर चले जाना ,खान साहब को, जैसे मुँह माँगी मुराद मिल गयी,रात्रि में उन्हें शैया उपलब्ध करायी गयी, सुबह नाश्ता कराया गया, जब खान साहब विदा होने लगे तो, उनके अश्रुधारा फूट पड़ी। उन्होंने कहा कि “आप साक्षात् भगवान है।” ये तिलक धारी सज्जन हिन्दी के महान साहित्यकार तथा सांसद सेठ गोविन्द दास थे। सेठ गोविन्द दास ने कहा कि हमारी संस्कृति में मेहमान को देवता कहा गया है। मैंने जो कुछ भी किया है, वह अपनी संस्कृति के अनुरूप अपने मानवतारुपी कर्तव्य का पालन ही किया है, यही है वैश्य जाति का महान मानवतावादी एवं करुणामयी दृष्टिकोण का भाव,