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उत्तर प्रदेश

कुटीर उद्योग में आने वाले भटृॊं को बदनाम करने की चल रही है साजिश

आज की तारीख में पूरे एनसीआर में सिंगल भट्टे की चिमनी से भी नहीं निकल रहा है धूआं| फिर भी अन्य कारणों के चलते एकयूआई लेबल पहुंचा 488| यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि प्रदूषण का बहाना लेकर एनजीटी ने भट्ठा स्वामियों से जिग-जैग सिस्टम में परिवर्तन कराने के नाम पर भट्ठा स्वामियों का पहले ही लगभग 40 से 50 लाख रुपए खर्च करा चुकी है| एनजीटी का मानना था कि जिग जैग सिस्टम में भटृॊं के परिवर्तन हो जाने से भटृॊं द्वारा प्रदूषण नहीं होगा उसके बावजूद भी भटृॊं को बंद कराने की नई-नई साजिश होती रहती हैं|

भट्टा उद्योग के साथ यह कैसा मजाक ? यह किस तरह का शोषण है ? कि भट्टा स्वामी अपने अपने-अपने भटृॊं को बंद कर घर बैठे हैं फिर भी भटृॊं के चलते शहर की हवा गंभीर| हमारी समझ से बाहर है और यह बात तो जानकारों की छोड़ो बच्चा भी जानता है कि की भट्टा शुरू होने के बाद उसको लगातार चलाना होता है यह कोई उस तरह का व्यवसाय नहीं है कि हम जब चाहे अपने भट्टे की चिमनी से निकलने वाले धुएं को बंद करें और घर आ जाएं जिन कारणों से प्रदूषण बढ़ रहा है उन कारणों के ढूंढने के बजाय शासन प्रशासन इस कुटीर उद्योग को हमारी रोजी-रोटी को जड़ से ही समाप्त करने पर तुली है| मैं अपनी यूनियन के मुखियाओं से भी कहना चाहता हूं कि इस साजिश के खिलाफ शीघ्र कदम ना उठाया गया तो यह कुछ लोगों के स्वार्थ के चक्कर में हम भट्टा स्वामियों द्वारा इतनी मोटी रकम लगाकर भी बेरोजगार हो जाएंगे|अब तो भट्टा स्वामियों का शोषण होना बंद हो बहुत हो गया एनसीआर में आने वाले भटृॊं के साथ साजिश का यह खेल|

सह संपादक संजय गोयल

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