एक रूपया व एक ईट
एक रूपया व एक ईट:- अग्र -वैश्य समाज की गौरव गाथा , भाग 11
समाजवादी व्यवस्था के पोषक
वैश्य जाति सम्पूर्ण देश की सुख, शान्ति और समृद्धि की कामना करती है। सबसे पहले महाराजा अग्रसेन जी ने आज से 5145 वर्ष पूर्व समाजवादी व्यवस्था की परिकल्पना की थी। उनके राज्य में जो भी नया व्यक्ति आता था, उसे एक रूपया तथा एक ईंट दी जाती थी। इस प्रकार उसके पास एक लाख रूपया तथा एक लाख ईंट हो जाती थी। एक लाख ईंट से वह व्यक्ति अपना मकान बना लेता था तथा एक लाख रुपयों से वह अपना व्यापार प्रारम्भ कर देता था। ऐसी थी महाराजा अग्रसेन की समाजवादी व्यवस्था। इसी व्यवस्था को आज के युग में डा० राम मनोहर लोहिया जी ने प्रतिपादित किया। उन्होंने सम्पूर्ण समाज के उत्थान की कामना की। उन्होंने यह प्रतिपादित किया कि जो भी पैसा किसी व्यक्ति के पास है, वह सम्पूर्ण समाज का है, न कि किसी व्यक्ति विशेष का। इसी आधार पर उन्होंने सम्पूर्ण समाज के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक उत्थान की अवधारणा प्रस्तुत की। वास्तव में वैश्य जाति गंगा की तरह पावन, कल्पतरू की तरह विशाल, आकाश की तरह महान तथा समुद्र की तरह गहन और गम्भीर है।