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उत्तर प्रदेश

यूपी में सपा को बहुत बड़ा झटका

सपा नेता नरेंद्र भाटी के भाजपा में आने से गौतम बुध नगर जिले के बदलेंगे राजनीतिक समीकरण

उत्तर प्रदेश विधान परिषद (एमएलसी) चुनाव से पहले नेता सुरक्षित ठिकाने की तलाश में जुट गए हैं. ऐसे में नेताओं की पहली पसंद बीजेपी बन रही है, क्योंकि उन्हें सत्ता में रहने का सियासी फायदा मिलने की उम्मीद है. इसी कड़ी में सपा के चार विधान परिषद सदस्यों ने बीजेपी की सदस्यता ग्राहण की है. 2022 के चुनाव से पहले बीजेपी ने सपा को बड़ा झटका दिया है.

सपा के चार एमएलसी बीजेपी में शामिल

सपा के चार विधान परिषद सदस्यों रविशंकर सिंह पप्पू, सीपी चंद, रमा निरंजन और नरेंद्र भाटी ने बुधवार को बीजेपी का दामन थाम लिया है. सपा छोड़कर बीजेपी में शामिल होने वाले चार नेता निकाय क्षेत्रों के द्वारा एमएलसी हैं. माना जा रहा है कि बीजेपी इन चारों सदस्यों को निकाय क्षेत्र एमएलसी चुनाव में उतार सकती है, क्योंकि ये सभी दिग्गज हैं और अपने-अपने इलाके के मजबूत नेता माने जाते हैं.

गौतम बुध नगर के कद्दावर नेता नरेंद्र भाटी

एमएलसी रविशंकर सिंह उर्फू पप्पू ने बीजेपी की सदस्यता ली है, जो पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के पौत्र हैं. चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर पहले ही सपा छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं और राज्यसभा सदस्य हैं. पूर्व मंत्री मार्कण्डेय चंद के पुत्र सीपी चंद 2016 में सपा के समर्थन से गोरखपुर से एमएलसी बने थे और अब उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया है.

नोएडा के नरेंद्र भाटी बीजेपी में शामिल

वहीं, नोएडा से सपा एमएलसी नरेंद्र भाटी ने भी बीजेपी की सदस्यता ली है, जो पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव के करीबी माने जाते हैं. अवैध खनन मामले में नोएडा की एसडीएम दुर्गशक्ति नागपाल के द्वारा कड़ी कार्रवाई किए जाने के बाद नरेंद्र भाटी चर्चा में आए थे. बीजेपी ने भी इसे बड़ा मुद्दा बनाया था और अखिलेश सरकार को घेरा था. बीजेपी ने अब उसी नरेंद्र भाटी को पार्टी की सदस्यता दिलाई है. इसके अलावा झांसी-जालौन-ललितपुर सीट से एमएलसी रमा निरंजन भी सपा को अलविदा कहकर बीजेपी में शामिल हो गई हैं.

बता दें कि 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले सूबे में विधान परिषद की सीटों पर चुनाव होने हैं. स्थानीय निकाय के द्वारा चुने गए 36 विधान परिषद सदस्यों (एमएलसी) का कार्यकाल पांच महीने के बाद सात मार्च 2022 को पूरा हो रहा है. मार्च में ही सूबे में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसके चलते एमएलसी के चुनाव पहले होंगे. ऐसे में नवंबर के आखिर या दिसंबर के पहले सप्ताह में यूपी के एमएलसी चुनाव का ऐलान हो सकता है.

स्थानीय निकाय सीटों पर घमासान

विधान परिषद में स्थानीय निकाय क्षेत्रों के चुनाव में सत्ता में रहने वाली पार्टी को सियासी फायदा मिलता रहा है. यही वजह है कि चुनाव से पहले विपक्षी दल के एमएलसी बीजेपी में आ रहे हैं. सपा के इन चार एमएलसी के बीजेपी में शामिल होने के बाद विपक्ष के कई और नेता भी भगवा झंडा थाम सकते हैं.

दरअसल, स्थानीय निकाय से होने वाले विधान परिषद चुनाव में जीत मिलने के साथ ही बीजेपी उच्च सदन में भी बहुमत हासिल कर लेगी. वहीं, वर्तमान में स्थानीय निकाय क्षेत्र से अधिकांश एमएलसी सपा के हैं, जिनका कार्यकाल पूरा हो रहा है. ऐसे में सपा के लिए अपनी सीटें बचाने के साथ राजनीतिक संदेश देने की कोशिश भी करेगी कि सूबे में वो सक्षम और सियासी तौर पर सुदृढ़ है.

एमएलसी चुनाव में वोटर कौन?

सूबे के विधान परिषद की स्थानीय निकाय कोटे की 36 सीटों पर होने वाले चुनाव में जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत के सदस्य, ग्राम प्रधान, नगर निगम, नगर पालिका व नगर पंचायत के सदस्यों के साथ ही कैंट बोर्ड के निर्वाचित सदस्य भी वोटर होते हैं. इसके अलावा स्थानीय विधायक और स्थानीय सांसद भी वोटर होते हैं. ऐसे में सूबे की सत्ता में रहने वाली पार्टी के लिए एमएलसी चुनावा फायद मिलता रहा है.

सपा को 2016 में फायदा मिला

यूपी में 2016 में विधान परिषद चुनाव हुए थे, उस समय सूबे की सत्ता में सपा थी. 2016 में स्थानीय निकाय की 36 विधान परिषद सीटों में सपा ने 31 सीटें जीतकर उच्च सदन में बहुमत हासिल किया था. आठ एमएलसी सीटों पर सपा ने निर्विरोध जीत दर्ज की थी.

वहीं, महज दो एमएलसी सीटों पर बसपा चुनाव जीती थी जबकि कांग्रेस से दिनेश प्रताप सिंह रायबरेली से जीते थे. इसके अलावा बनारस से बृजेश कुमार सिंह और गाजीपुर से विशाल सिंह ‘चंचल’ निर्दलीय जीते थे. दिनेश प्रताप सिंह और विशाल सिंह ने बाद में बीजेपी का दामन थाम लिया था.

उच्च सदन में बहुमत जुटाने की चुनौती

यूपी में विधान परिषद चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि बीजेपी इसमें अधिक से अधिक सीटें जीतकर विधान परिषद में बहुमत हासिल करना चाहेगी, जबकि सपा अपनी सीटें बचाने में जुटेगी. ऐसे में बीजेपी अब विपक्ष दलों के मौजूदा एमएलसी को अपने साथ मिलाने में जुटी है ताकि चुनाव में उन पर दांव खेलकर बहुमत का आंकड़ा जुटा सके.

विधान परिषद में अभी सपा के 48, बीजेपी के 33, बसपा के छह, कांग्रेस के एक, अपना दल के एक, शिक्षक दल के दो, निर्दलीय समूह के 2, निर्दलीय तीन और पांच रिक्त पद हैं. उच्च सदन में बहुमत के लिए 51 सदस्य चाहिए. ऐसे में विधान परिषद में बहुमत के लिए बीजेपी को निकाय क्षेत्र की 36 सीटों में से कम से कम 15 सीटों पर जीत जरूरी है.

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