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एक रूपया व एक ईट

एक रूपया व एक ईट:- अग्र -वैश्य समाज की गौरव गाथा , भाग 13

एक रूपया व एक ईट:- अग्र -वैश्य समाज की गौरव गाथा , भाग 13

 वैश्य जाति अव्यवस्था की की पोषक है विरोधी तथा सुव्यवस्था

वैश्य जाति के लोग अव्यवस्था के विरोधी तथा सुव्यवस्था के पोषक है। इसीलिए वैश्य जाति के व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में व्यवस्था पर बहुत ध्यान दिया जाता है तथा उनके प्रतिष्ठानों में सुव्यवस्था उच्च स्तर की चुकी है। पायी जाती है, लेकिन आज सम्पूर्ण देश में व्यवस्था जर्जर हो चुकी इसका कारण है कि देश की सत्ता में वैश्य जाति के लोग नगण्य है। आज जो लोग सत्ता में है, वे व्यवस्था नहीं कर सकते, क्योंकि मैनेजमेण्ट एक ऐसा विषय है जिसके द्वारा प्रबंधन करना सिखाया जाता है। हमारे नेतागण सिर्फ चुनाव में जीतना जानते है, उनके पास प्रबंधन की कला नहीं है। वे नहीं जानते कि देश में सुव्यवस्था और शान्ति कैसे कायम की जाए। हमारे नेता तो सिर्फ भड़काऊ भाषण देकर, देश में साम्प्रदायिक दंगे करा सकते हैं या आंतकवादी घटनाओं को बढ़ावा दे सकते है। हमारे देश में साम्प्रदायिक दंगों के लिए, आतंकवाद के लिए, भ्रष्टाचार के लिए, अव्यवस्था के लिए कौन दोषी है? क्या हमारे सत्ता के शिखर पर बैठे नेता गण दोषी नहीं है? जिन लोगों को प्रबंधन की कला नहीं आती, उन लोगों को सम्पूर्ण देश के प्रबंधन का कार्य सौप दिया गया है। यह भी एक विडम्बना ही है। इस देश की व्यवस्था के कुछ उदाहरण देखिये

  1.  राहुल बजाज को एक अवसर पर सचिव के पास चार घण्टे तक इंतजार करना पड़ा।
  2. एक उद्योगपति की फाईल में एक सचिव की नोटिंग छ: माह में लगी।
  3.  देश में लगभग अट्ठारह करोड़ मुकदमें लम्बित है। यदि इसी रफ्तार से इन मुकदमों का निस्तारण हुआ तो कुल 350 वर्ष इनके निस्तारण में लग जायेंगे।
  4. एक व्यक्ति को न्याय मिलने में औसतन 20 वर्ष लग जाते हैं।
  5.  देश के नेताओं का लगभग 400 लाख करोड़ रूपया विदेशी बैकों में जमा है।

मैने यहाँ पर वैश्य जाति की कुछ प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डाला है। इन्हें पढ़कर आपके हृदय में निश्चित रूप से गर्व और स्वाभिमान की अनुभूति होगी।

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