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एक रूपया व एक ईट

एक रूपया व एक ईट:- अग्र -वैश्य समाज की गौरव गाथा , भाग 15

पहली मान्यता के अनुसार
“वैश्य भारत के मूल निवासी थे”

जब हम इस तथ्य को स्वीकार करते है कि आर्य लोग बाहर से आये थे। जिस समय आर्य लोग भारतवर्ष में आये, उस समय भारत में पणि नाम की एक जाति रहती थी जो व्यापार करती थी तथा गोपालन करती थी। गाय के दूध से दही बनाना, क्रीम बनाना, घी बनाना तथा पनीर व छाछ बनाना जानती थी। यही जाति बाद में वर्णिक, फिर वैश्य के नाम से जानी गयी। ऋग्वेद के अनुसार आर्यों को इन पणियों से टक्कर लेनी पड़ी। ऋग्वेद में पणियों और आर्यों की टक्कर का वर्णन आया है। यहाँ उसका वर्णन हम संक्षेप में करते है।

ऋग्वेद के दसवें मण्डल के 108वें सूक्त में सरमा और पणि सम्वाद आया है। सरमा आर्यों के राजा की दूती थी। राजा को इन्द्र कहा गया है। इन्द्र ने सरमा को अपनी दूती बनाकर पणियों के पास इसलिए भेजा क्योंकि पणियों ने इन्द्र की गायों को बलात चुराकर पर्वत की गुफाओं में छिपा दिया था।

पढ़ें – शेष अगले अंक में

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