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एक रूपया व एक ईट

एक रूपया व एक ईट:- अग्र -वैश्य समाज की गौरव गाथा , भाग 18

पणियों (वणिकों) का विदेशों में बहिर्गमन
पणियों ( वणिकों) का देश के अन्य भागों में गमन

आर्यों से पराजित होने पर कुछ पणियों को आर्यवर्त से खदेड़ दिया गया। अतः ये देश के अन्य भागों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और 4 तमिलनाडु में चले गये। कुछ पणि लोग असम और बंगाल चले गये। ये पणि लोग भारत के अन्य भागों में फैल गये। ये पणि लोग ही बाद में वणिक फिर वैश्य कहलाये।

 शेष पणियों की आर्यों से मित्रता

पणि लोग शुद्ध शाकाहारी थे तथा आर्यों की पशु-बलि के विरोधी थे। इन संस्कारों का प्रभाव आर्यों पर भी पड़ा और वे इन पणियों से घुल-मिल गये। उन्हें आर्यों ने अपने साथ मिला लिया तथा तीसरा स्थान दिया एवं धन व्यवस्था का कार्यभार इन्हें सौप दिया। आर्यों के ऋषि-मुनि लोगों ने पणियों ( वणिकों) को तीसरे स्थान के रूप में मान्यता दी। इनके नीचे अन्य द्राविड़ जातियाँ थीं। जिन्हें आर्यों ने शूद्रों में मान्यता दी। इस प्रकार पहली मान्यता के अनुसार जिसमें आर्य लोग बाहर से आये थे, जातियों का विकास धीरे-धीरे हुआ जिससे भारत के मूल निवासी पणियों को वणिक (व्यापारी) के रूप में मान्यता दी गई। यही पणि बाद में वैश्य जाति के रूप में विश्व में विख्यात हुई।

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