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विधानसभा चुनाव 2022

जातिगत दवाब में राजनीतिक हिस्सेदारी प्रदेश के लिए उचित नही

जातिगत दवाब में राजनीतिक हिस्सेदारी प्रदेश के लिए उचित नही - दिव्य अग्रवाल

इस चुनावी मौसम से सभी राजनीतिक दल अपना बिगुल बजा चुके हैं। लोकतंत्र के इस महापर्व में जन नेता की परीक्षा होती है । जिसकी विजय या पराजय पर जनता का सुख दुख भी निर्भर होता है । परन्तु वर्तमान स्थिति को देखते हुए लगता है कि अब राजनीति में जन नेता या जनाधार से महत्वपूर्ण यह है कि किसी नेता की जाती क्या है । तभी तो जातीगत समीकरण के आधार पर आज के नेता राजनीतिक दलों पर दवाब बनाने में सफल हो रहे हैं ।

दिव्य अग्रवाल
दिव्य अग्रवाल(राष्ट्रवादी लेखक व विचारक, गाजियाबाद)

कोई अपने साथियों के साथ दल बदल रहा है तो कोई गठबंधन के नाम पर अपने – अपने दलों को ज्यादा सीटो की भागीदारी दिलवाने में सफल हो रहा है । दूसरी तरफ प्रबुद्ध , सक्षम व जमीनी जनाधार रखने वाले राजनीतिक दलों को प्राथमिकता शायद इसलिए नही दी जाती क्योंकि ऐसे दल या नेता जातिगत तुष्टिकरण की राजनीति न करते हुए जनता की सेवा व जनसुलभ होने वाली राजनीति में विश्वास रखते हैं। अतः जातियों के आधार पर राजनीतिक हिस्सेदारी का यह चलन भविष्य में प्रचलन बनकर सामाजिक दुष्परिणाम ही देगा । राजनीतिक गठबंधन, विचारो की समानता या असमानता , जनाधार,कार्यशैली व लोकप्रियता के आधार पर यदि होगा तो ऐसा गठबंधन समाज , जनता व देश के सदैव लाभकारी होगा ।

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