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भारत में मिसाइलों के नाम कैसे दिए जाते हैं और क्या हैं प्रतीक?

भारत में मिसाइलों के नाम कैसे दिए जाते हैं और क्या हैं प्रतीक?

अगर आपको लगता है कि यह इत्तेफाक की बात है कि मिसाइलों का नाम क्या रखा गया या क्या रखा जाता है, तो आप एक तरह से ठीक भी हैं और एक तरह से नहीं भी. पृथ्वी आकाश ,अग्नि, ब्रह्मोस या हाल में जिसका परीक्षण किया गया, शौर्य मिसाइल आदि को ये नाम कैसे मिले? किसने दिए और क्या इसके लिए कोई खास नियम कायदे या प्रक्रिया है? इन तमाम सवालों के जवाब के साथ ये भी जानिए कि भारत में मिसाइल को लेकर परंपरा किस तरह से समझी जाती है.

भारत में मिसाइल का इतिहास
कहते हैं कि तर्क के मामले में विज्ञान का सहारा लिया जाता है, जबकि विश्वास के लिए धर्म का. अक्सर धर्म और विज्ञान एक दूसरे के विरोधी ही समझे गए हैं, लेकिन मिसाइलों के इतिहास के मामले में ऐसा नहीं है. यहां विज्ञान धर्म का सहारा लेता है. ब्रह्मोस मिसाइल के  आधिकारिक पोर्टल  पर दर्ज है कि किस तरह से पौराणिक कल्पनाओं से मिसाइल विज्ञान विकसित हुआ.

रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में जिन हथियारों को ‘अस्त्र’ कहा गया, वास्तव में, आधुनिक युग में वही मिसाइल के रूप में सामने आए. यह पोर्टल कहता है कि पौराणिक कथाओं में अस्त्रों को मंत्रों से निर्देशित किया जाता था और आधुनिक युग में मिसाइलों को सॉफ्टवेयर के माध्यम से नियंत्रित ओर निर्देशित किया जाता है. कुल मिलाकर, बात यह है कि संस्कृत भाषा में लिखित पौराणिक आधार मिसाइलों के इतिहास में महत्वपूर्ण माने गए.

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दूसरे, आधुनिक मिसाइलों के बारे में बताया जाता है कि 1792 में दक्षिण भारतीय शासक टीपू सुल्तान ने शुरूआती रॉकेट का आविष्कार करवाया था. यह भी मिसाइल के इतिहास में परिकल्पना को लेकर अहम घटना है. हालांकि वर्तमान मिसाइलों की शुरूआत जर्मनी में गाइडेड मिसाइलों वी1 और वी2 से मानी जाती है. उसके बाद दुनिया भर में कई तरह की मिसाइलें विकसित हुईं और भारत इसमें पीछे नहीं रहा.

नाम क्यों हैं इतने खास?
जैसा कि इतिहास के हवाले से आपने जाना कि मिसाइलों को लेकर विज्ञान भी पौराणिक हवालों को तरजीह देता रहा है, इस लिए  संस्कृत के प्रतीकात्मक शब्दों  को लेकर एक रुझान साफ तौर पर रहा. अब रही बात कि मिसाइलों के नामकरण को लेकर क्या कोई खास प्रक्रिया है? तो इसका जवाब है नहीं. वास्तव में, होता यह रहा कि मिसाइलों के विकास के काम में वैज्ञानिक पूरी शिद्दत से जुटे रहे. एक तरह से अपने बच्चे को जन्म देने जैसा काम हो गया. इसलिए उन्होंने ही अपने ‘बच्चे’ को नाम देने का हक भी लिया.

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नामों के पीछे क्या कोई सोच रही?
बेशक. वैज्ञानिकों का हमेशा मानना रहा कि संस्कृत शब्द आकर्षक, सार्थक और शक्तिशाली रहे. फिर भी मिसाइलों का नाम तय करते समय मिसाइल के काम और प्रकृति को ध्यान में रखा गया. जैसे अग्नि, एक प्रक्षेप मिसाइल है. यानी इसके संचालन के लिए आग यानी एनर्जी काफी मात्रा में चाहिए होती है, इस मिसाइल का नामकरण करते समय इसे आधार माना गया.

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