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एक रूपया व एक ईट

एक रूपया व एक ईट:- अग्र -वैश्य समाज की गौरव गाथा , भाग 21

हिन्दुओं से जजिया कर हटवाने वाले राजवंश प्रवर्तक राजा रतन चन्द जी

राजवंशी अग्रवाल समाज के प्रर्वतक राजा रतन चन्द्र ने सन् 1701 में सैयद बन्धुओं का कोषाध्यक्ष बनकर, मुगल दरबार दिल्ली के पाँच हजारों मनसबदार बनकर राजा साहब का खिताब पाया। बाद में आपको शाह का खिताब भी मिला। आपने हिन्दुओं को अनेक लाभ पहुँचाये। 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र बहादुरशाह गद्दी पर बैठा। उसकी मृत्यु के बाद जहाँगीर शाह 1712 में शहंशाह बना। उसके बाद सैयद बन्धुओं और रतनचन्द की सहायता से उसके भतीजे फरूखसियर ने 1713 में अपने आपको बादशाह घोषित कर दिया। फरूखसियर के बादशाह बनने पर वास्तविक शक्ति सैयद बन्धुओं के हाथों में आ गयी थी। सैयद बन्धुओं में से एक भाई प्रधानमन्त्री बना तथा दूसरा भाई सेनापति बना। राजा रतनचन्द ने फरूखसियर से हिन्दुओं के ऊपर से 1713 में जजिया कर हटवा दिया। लेकिन फरूखसियर ने मुल्ला-मौलवियों के कहने में आकर 1719 में पुनः हिन्दुओं पर जाजिया कर लगा दिया। जबकि राजा रतनचन्द ने फरूखसियर को इसी आधार पर सहायता दी थी। परन्तु बादशाह बनने पर फरूखसियर अपने वायदे से मुकर गया। यह जजिया कर हिन्दुओं के लिए बहुत ही अपमानजनक था। अतः राजा रतनचन्द ने सैयद बन्धुओं और मराठों की सहायता से फरूखसियर को 1719 में मरवा दिया तथा उसके पोते गद्दी पर बैठाया। उससे राजा रतनचन्द ने सबसे पहला आदेश हिन्दुओं से जाजिया कर समाप्ती का कराया। जजिया कर की वजह से हिन्दुओं को अपमानित होना पड़ता था। वास्तव में जाजिया कर हिन्दुओं के लिए अपमान का एक कड़वा घूंट था जो सभी हिन्दुओं को जबरदस्ती पीना पड़ता था। लेकिन राजा रतनचन्द ने अपने कौशल द्वारा इसे समाप्त करा दिया था। राजा रतनचन्द का जन्म कस्बा मीरापुर जिला मुजफ्फरनगर में हुआ था। सन् 1701 में जानसठ के सैयद बन्धुओं ने आपको कोषाध्यक्ष नियुक्त किया।

सैयद बन्धुओं से उनकी दोस्ती के कारण उस समय अग्रवाल समाज ने उनके पुत्र की शादी में गिन्दौड़ा लेने से मना कर दिया था। फलस्वरूप राजा रतनचन्द ने अपना एक अलग संगठन बनाया और उस संगठन के लोगों को पटवारी तथा जमींदार बनवाया। अपने प्रभाव से राजा रतनचन्द ने अपने संगठन के लोगों को शाही दरबार में ऊँचे-ऊँचे ओहदों पर पहुँचाया तथा सेना में भरती कराया। राजा रतनचन्द जी ने, जो अपना अलग संगठन बनाया, वही कालान्तर में वैश्य अग्रवाल राजवंशी समाज कहलाया। इसलिए सभी राजवंशियों को राजा रतनचन्द का अनुयायी कहा जाता है। राजा रतनचन्द एक दूरदृष्टा थे। हिन्दुओं के ऊपर से उन्होंने जजिया कर हटवाकर एक महान और पुनीत कार्य किया था। उनके इस कार्य को सम्पूर्ण हिन्दू समाज कभी नहीं भुला सकेगा तथा राजा रतनचन्द का नाम भी इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा।

कालान्तर में जब मुहम्मदशाह गद्दी पर बैठा तब उसके सैयद बन्धुओं से सम्बन्ध खराब हो गये। अतः उसने बड़े सैयद बन्धु हुसैन अली को मरवा दिया और राजा रतनचन्द जी को अपने पास बुलाकर सैयद बन्धुओं के खजाने के बारे में पूछा लेकिन उन्होंने खजाने की जानकारी शहंशाह को नहीं दी। अतः मुहम्मद शाह ने राजा रतनचन्द का सिर काटने का आदेश दिया। बाद में छोटे सैयद बन्धु को भी 1720 में विष देकर मार दिया गया।

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