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एक रूपया व एक ईट

एक रूपया व एक ईट:- अग्र -वैश्य समाज की गौरव गाथा , भाग 22

वैश्यों के लिए महालक्ष्मी पूजन

 

एक बार देवराज इन्द्र ने माँ लक्ष्मी से पूछा कि आप किसके यहाँ निवास करती है।

माँ लक्ष्मी ने कहा- जो अपने धर्म का पालन करते हैं, अपने कर्तव्यों का पालन करते है, जिनके हृदय में सरलता, बुद्धिमानी, अहंकार शून्यता, परम सौहार्दता, पवित्रता और करूणा है, जिनमें क्षमा, सत्य, दान, कोमल वचन, मित्रों से अद्रोह का भाव रहता है, उनके यहाँ पर मैं निवास करती हूँ।

 

एक बार युधिष्ठिर ने पितामह भीष्म से पूछा कि दादा जी मनुष्य किन उपायों से दुःख रहित रहता है? माँ लक्ष्मी की कृपा किस पर होती है? इस विषय पर एक प्राचीन कथा सुनाते हुए भीष्म जी ने कहा कि एक बार नारद जी ने माँ लक्ष्मी जी से कहा कि हे मातेश्वरी! आप ही बताइये कि आप किस प्रकार प्रसन्न होती है? किसके घर में आप स्थिर रहती है? किसके घर से आप विदा हो जाती है? आपकी सम्पदा किसको विमोहित करके संसार में भटकाती है और किसको असली सम्पदा भगवान नारायण से मिलाती है? माँ लक्ष्मी जी ने कहा कि हे देवर्षि नारद! तुमने लोगों की भलाई के लिए तथा मानव समाज के हित हेतु बड़ा ही सुन्दर प्रश्न किया है। अतः सुनो

 

पहले मैं दैत्यों के पास रहती थी, क्योंकि वे पुरुषार्थी थे। सत्य बोलते थे तथा वचन के पक्के थे। जो एक बार निश्चय कर लेते थे, उसको पूरा करने के लिए तत्परता से जुट जाते थे। निर्दोषों को सताते नहीं थे। सज्जनों का आदर करते थे तथा दुष्टों से लोहा लेते थे। लेकिन जब उनके सद्गुण, दुर्गुणों में बदलने लगे तब मैंने उन्हें छोड़ दिया तथा देव लोक में रहने लगी। समझदार लोग उद्यम से मुझे पाते हैं, दान से मेरा विस्तार करते हैं, संयम से मुझे स्थिर रखते हैं, सत्कर्म से मेरा उपयोग करके अपना जीवन सफल बनाते हैं। सत्य बोलने वाले, वचन में दृढ़ रहने वाले, पुरुषार्थी, कर्तव्य पालन में दृढ़ता रखने वाले, अकारण किसी को दण्ड

न देने वाले लोगों के पास मैं निवास करती हूँ। हे देवर्षि! जो श्रेष्ठ आचरण करते हैं, वहाँ मैं निवास करती हूँ। पूर्व काल में चाहे कितना भी पापी रहा हो, अधम और पातकी रहा हो, परन्तु जो अब शास्त्रों के अनुसार पुरुषार्थ करता है, मैं उसके जीवन में भाग्यलक्ष्मी, सुखलक्ष्मी, करुणा लक्ष्मी और औदार्य लक्ष्मी के रूप में विराजमान रहती हूँ। जो क्रोध नहीं करते, जिनका दयालु स्वभाव है, जो विचारवान है, वहाँ मैं स्थिर होकर रहती हूँ। जो सरल हैं, परोपकारी है, विनम्र है, मृदुभाषी है, वहाँ में निवास करती हूँ। जो लोग झूठे मुँह रहते है, मैले कुचेले कपड़े पहनते है, दाँत मैले-कुचेले रखते है, दीन-दुखियों को सताते है, माता-पिता की सेवा नहीं करते, शास्त्र और सन्तों को नहीं मानते, गुरूजनों का आदर नहीं करते हैं, ऐसे हीन स्वभाव वाले लोगों का भविष्य दुःखदायी होता है।

जो पुरुष अकर्मण्य, नास्तिक, कृतघ्न, दुराचारी, क्रूर, चोर तथा गुरूजनों के दोष देखने वाला हो उसके भीतर मै निवास नहीं करती हूँ। जो स्त्रियाँ सत्यवादिनी, सौम्य, सौभाग्यशालिनी, सदगुणवती, पतिव्रता और कल्याणमय आचार विचार वाली होती है, जो सदा सुन्दर वस्त्रों एवं आभूषणों से विभूषित रहती हैं, मृदुभाषिणी होती है, मैं ऐसी स्त्रियों में सदा निवास करती हूँ। मैं अनन्य चित्त होकर तो भगवान नारायण में ही सम्पूर्ण रूप से निवास करती हूँ, क्योंकि उनमें महान धर्म सन्निहित है। उनका ब्राह्मणों के प्रति प्रेम है तथा उनमें स्वयं सर्वप्रिय होने का गुण है। अतः जो पुरुष अनन्यभाव से नारायण का स्मरण करते हैं और नारायण के समान श्रेष्ठ आचरण करते हैं, मैं भावना द्वारा ऐसे पुरुषों में निवास करती हूँ। वह व्यक्ति धर्म, यश, ऐश्वर्य एवं धन सम्पदा से सम्पन्न होकर सदा बढ़ता ही रहता है।

महालक्ष्मी की प्राप्ति कैसे-….. अगले भाग में…. 

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