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साहित्य उपवन

क्या कभी हिन्दू समाज भी जमीयत उलेमा ए हिन्द की तरह सोच सकता है- दिव्य अग्रवाल

एक तरफ जहाँ अहमदाबाद ब्लास्ट केस में माननीय न्यायालय ने 38 दोषियों को फांसी एवम 11 दोषियों को उम्र कैद की सजा सुनाई है। वहीं इस्लामिक संगठन जमीयत उलेमा ए हिन्द ने इन सभी दोषियों की पैरवी करते हुए उक्त आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती देने का निर्णय लिया है । हाई कोर्ट में अपील करना सबका संवैधानिक अधिकार है।

परन्तु क्या नैतिक जिम्मेदारी को समझते हुए उन दोषियों का बचाव करना उचित है। जिनके कारण बहूत से निर्दोष लोगों की हत्या हुई । भारत में अनेकों आतंकवादी घटनाएं हुई परन्तु सबने यही कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नही होता । यदि वास्तव में आतंकवाद का कोई धर्म नही होता तो जमीयत उलेमा ए हिन्द इन दोषियों की पैरवी क्यों कर रहा है । एक तरफ धर्म के नाम पर इस्लामिक संगठन व इस्लामिक धर्म गुरु खुलकर उन लोगो का बचाव करते आ रहे हैं जो मानवता की हत्या एवम आतंकवादी घटनाओं में लिप्त रहे हैं।

दिव्य अग्रवाल
दिव्य अग्रवाल(राष्ट्रवादी लेखक व विचारक, गाजियाबाद)

जबकि दूसरी तरफ हिन्दू समाज मानवता संरक्षण हेतु उन सनातन धर्म गुरुओं का भी साथ नही देना चाहता जो इस कटरपंथी व आतंकवादी विचार के विरुद्ध आम जन मानस व इस राष्ट्र को जागरूक कर रहे हैं । यह भारत की सहिष्णुता ही तो है । जिस देश मे लोगो की हत्या करने वाले लोगो के पक्ष में भी कुछ मजहबी संगठन खुलकर समर्थन भी कर पाते हैं एवम उनके परिवारों का लालन पालन भी करते हैं । अतः इन सब घटनाक्रम को देखते हो मानवता की रक्षा हेतु सभ्य समाज को भी निष्पक्ष रूप से आत्मरक्षा हेतु कुछ मापदण्ड निर्धारित करने ही होंगे ।

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