एक रूपया व एक ईट
एक रूपया व एक ईट:- अग्र -वैश्य समाज की गौरव गाथा , भाग 23
अग्रोहा का पुनर्निर्माण
अग्रोहा नगर जलने के बाद खेड़े के रूप में सैकड़ों वर्षों तक पड़ा रहा। अग्रोहा के निवासी आसपास के शहरों में जाकर बस गये। मेहम नगर में रहने वाले हरभज शाह को एक दिन एक व्यापारी मिला जो ग्यारह सौ ऊँटों पर कैंसर लेकर मेहम आया था। इस व्यापारी का नाम श्रीचन्द था। इसके कारिन्दों को यह आदेश था कि समस्त केसर एक ही व्यक्ति को बेची जायेगी। उसके कारिन्दे नगर-नगर घूमते रहे, पर केसर खरीदने का साहस कोई नहीं कर सका। अन्त में वे कारिन्दे मेहम आये, जहाँ सेठ हरभज शाह की हवेली का निर्माण हो रहा था। सेठ के मुनीम ने हरभज शाह से केसर बेचने वाले व्यापारी की चर्चा की। हरभज शाह ने कहा कि यह प्रतिष्ठा का प्रश्न है। अतः उन्होंने कहा कि मेहम से कोई व्यापारी वापिस नहीं जायेगा। उन्होंने अपने मुनीम और नौकरों को आदेश दिया कि समस्त केसर खरीद कर तहखाने में भरवा दें। केसर खरीद ली गई। श्रीचन्द ने जब यह बात सुनी तो उसने हरभज शाह को एक पत्र लिखा कि हवेली बनाने में कोई गौरव नहीं, जब तक कि उनकी जन्मभूमि निराश्रित और उपेक्षित पड़ी हुई है।
हरभज शाह को यह बात लग गई। उसने स्यालकोट के राजा रिसालू की मदद से अग्रोहा को पुनः बसाने की योजना को मूर्तरूप देना प्रारम्भ कर दिया। हरभज शाह ने अग्रोहा के पास ही एक दुकान खोल ली तथा वहाँ आने जाने व्यक्ति को इहलोक और परलोक में उधार चुकता करने की बद पर रूपये उधार देना शुरू कर दिया तथा हर व्यक्ति को अग्रोहा में बसने के लिए मजबूर करता था। अतः इस प्रकार धीरे-धीरे अग्रोहा पुनः आबाद होने लगा तथा सेठ हरभज शाह की प्रतिष्ठा अग्रवाल समाज में सदा सर्वदा के लिए प्रतिष्ठित हो गई।
लक्खी का तालाब और हरभज शाह….. अगले अंक मे