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रक्षाबंधन को शतरंज व बेटियों को मोहरा बनाना किसी षड्यंत्र से कम नही

रक्षाबंधन को शतरंज व बेटियों को मोहरा बनाना किसी षड्यंत्र से कम नही- दिव्य अग्रवाल

क्या आप किसी नरभक्षी जानवर से अपेक्षा कर सकते हैं कि वो भूख लगने पर बिना शिकार करे किसी को छोड़ देगा । शायद नही क्योंकि वो अपने स्वभाव को कभी नही बदल सकता। परन्तु कुछ संगठनों , राजनीतिक दलों व प्रभावशाली लोगों ने मजहबी व कटरपंथी लोगो के लिए आडम्बर भरी परम्पराओ को प्रचलित कर दिया है। जिनका विश्वास , आस्था व संम्बंध उन परम्पराओ से है ही नही।

रक्षाबधन सनातनी हिन्दुओ का पर्व है जिसका संबंध मुस्लिम समाज से बिल्कुल भी नही है ।एक ही मुस्लिम परिवार में जन्मे लड़का लड़की आपस मे भी रक्षाबन्धन के इस पवित्र पर्व को नही मनाते क्योंकि इस्लाम से अतिरिक्त अन्य किसी धर्म या परम्परा को मानना कुफ्र के समान है। अब इस व्यवस्था में जो लोग अपनी हिन्दू बेटियों को मुस्लिम समाज के लड़कों के समक्ष राखी के नाम पर भेज देते हैं तो क्या उन लड़कों से भी अपेक्षा की जा सकती है कि वो अपनी मुस्लिम बहनों को हिन्दू लड़को की कलाई पर राखी बांधने भेज दें ।

दिव्य अग्रवाल
दिव्य अग्रवाल(राष्ट्रवादी लेखक व विचारक, गाजियाबाद)

जब मुस्लिम समाज के लड़के अपनी ही बहनों को इस पर्व हेतु तैयार नही कर सकते तो किस नियत से हिन्दू लड़कियों से राखी बंधवाते हैं । कुछ बड़े लोगो ने इस आडम्बर भरी प्रथा शुरू कर रखी है जिससे कहीं न कहीं लव जिहाद की भी नींव रखी जाती है । अतः अपनी बेटियों को किसी के भी कहने पर आस्था , धर्म व भाईचारे के नाम पर किसी ऐसे षड्यंत्र या प्रपंच में न फसने दे जिससे बाद में पछताना पड़े ।

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