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साहित्य उपवन

मेडिकल जिहाद कहीं गजवा ए हिन्द का हिस्सा तो नहीं – दिव्य अग्रवाल

एक समय था जब लव जिहाद व भूमि जिहाद पर बात करना अतिशयोक्ति हुआ करता था । आज भारत का सभ्य समाज  इन दोनों जिहाद के दंश को झेलते हुए भी मूकदर्शक बना हुआ है । कश्मीर का हिन्दू नरसंहार सभी ने देखा पर उसमें एक विशेष जिहाद किसी ने नहीं देखी जो अब पुरे भारत में योजनाबद्ध तरीके से क्रियान्वित हो रही है। कश्मीर में जब हिन्दू नरसंहार किया जा रहा था उस समय वहां का मेडिकल स्टाफ किसी भी हिन्दू का उपचार नहीं कर रहा था । जिसको मेडिकल जिहाद की संज्ञा दी जा सकती है। केरल में ऐसे कुछ अस्पताल हैं जिनमे ज्यादातर उपचार केवल मुस्लिम समाज का ही होता है केरल व दक्षिण प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों से मुस्लिम समाज के बच्चों को मेडिकल नर्सिंग व् सहायक स्टाफ को १०० % स्कॉलरशिप के साथ प्रशिक्षण दिया जा रहा है। पहले पश्चिम उत्तर प्रदेश व् दिल्ली के अस्पतालों में ज्यादातर  क्रिश्चियन नर्सिंग स्टाफ कार्यरत रहता था परन्तु आज अधिकतर अस्पतालों में मुस्लिम नर्सिंगव् सहायक स्टाफ कार्यरत है। डाइग्नोस्टिक लैब , आक्सीजन प्लांट , सर्जिकल वस्तु उत्पादन ,अस्पतालों के ड्राइक्लीनर , सिक्योरिटी स्टाफ इत्यादि में मुस्लिम समाज की भागीदारी विगत कुछ वर्षो से तीव्रता से बढ़ी है। यदि आने वाले समय में कश्मीर के मौलानाऔ की भाँती सम्पूर्ण भारत में फतवा दे दिया की काफिर अर्थात गैर मुस्लिमो का उपचार करना मजहब विरोधी है तब भारत के बहुसंख्यक समाज का उपचार कोई भी डॉक्टर , सर्जन आदि कैसे कर पाएंगे शायद उनके लिए अपनी मेडिकल प्रैक्टिस करना भी मुश्किल हो जाएगा । धर्म या मजहब के आधार पर किसी भी क्षेत्र में किसी एक समाज का एकाधिकार होना राष्ट्र के लिए हितकारी नहीं होगा एवं जो बुद्धिजीवी यह कहते हैं की मेडिकल शिक्षा का मजहब से कोई सम्बन्ध नहीं तो उन बुद्धिजीवियों को कुछ मेडिकल कॉलेजों या अस्पतालों का परिक्षण करना चाहिए। जिनके विद्यार्थी / नर्स आदि मजहबी हिजाब या बुरका पहनकर सार्वजनिक रूप से प्रमाण दे रहे हैं की उनके लिए मजहब से बढ़कर कुछ भी नहीं है।

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