[ia_covid19 type="table" loop="5" theme="dark" area="IN" title="India"]
धर्म

जैन धर्म – वर्णऔर जाति पर ग्लोबल न्यूज 24×7 की विशेष रिपोर्ट

जैन धर्म - वर्णऔर जाति पर प्राप्त तथ्यों के आधार पर ग्लोबल न्यूज 24×7 की विशेष रिपोर्ट

मनुष्य जाति मे चाण्डाल से निष्कृष्ट कर्म किसी का नही होता। इस कर्म को करनेवाला व्यक्ति भी लोकोत्तर धर्म का अधिकारी हो सकता है तब अन्य इसके मानने के अधिकारी नहीं, यह चर्चा करना व्यर्थ है। वास्तव मे जैन धर्म मे वर्ण, कुल या वंश, जाति, विपुल ज्ञान, लौकिक प्रतिष्ठा, शारीरिक बल, सम्पदा, रूप, तप इनका महत्व नहीं है। इस धर्म में दीक्षित होनेवाला आठ मदो को त्याग कर ही उसकी दीक्षा का अधिकारी होता है।

प्राचीन जैन साहित्य में न तो आर्य या म्लेछ और न ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ये भेद दृष्टि गोचर होते है। भारत मे प्राचीन समाज व्यवस्था ब्राह्मणधर्म व्यवस्था से भिन्न थी। 1- सामाजिक उच्च-नीचता, 2 – आध्यात्मिक उच्च-नीचता, पहली समीम और दूसरी असीम, पहली का आधार समाज और दूसरी का आधार जीवन, पहली लौकिक, काल्पनिक और दूसरी आध्यात्मिक, वास्तविक। मूल जैन साहित्य का जातिधर्म से रंचमात्र भी सम्बन्ध नही है। किन्तु मध्यकाल मे जाति धर्म का व्यापक प्रसार होने से यह भी अछूता नही रहा। उत्तरकालीन आचार्य जो जैन धर्म के आधार स्तम्भ रहे, उन्हे भी किसी- न -किसी रूप में जातिधर्म को प्रश्रेय देना पड़ा। वर्तमान मे जैन धर्म के अनुयायियो मे जो जाति प्रथा का प्रसार, आग्रह देखा जाता है यह उसी का फल है।

भारत मे जाति प्रथा की जड़े बहुत गहरी है। भारत में जाति प्रथा का बीजारोहण आर्यो के आने के बाद हुआ। वेदो की रचना के साथ आजीविका या कृत्य/कर्म अनुसार वर्णो (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) की स्थापना हुई। वेदो की रचना के बाद उपनिषदो की रचना के साथ हिन्दुत्व/हिन्दुओ की उत्पत्ति हुई। वैदिक युग की वर्ण व्यवस्था हिन्दू धर्म मे चार-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र जातियो मे बदल गई जिसका आधार जन्म था। “मनुस्मृति” मे ब्राह्मण को सर्वोपरि बताया गया, इसी कारण हिन्दुधर्म को ब्राह्मणधर्म भी कहा जाता है। वास्तव मे ब्राह्मणो को जाति का जन्मदाता कहना अनुपयुक्त नहीं होगा।

नौवीं शताब्दी मे “महापुराण” के कर्ता आचार्य जिनसेन ने ब्राह्मण वर्ण के साथ जाति की उत्पत्ती भरत चक्रवर्ती द्वारा बताई है। आचार्य जिनसेन ने “महापुराण” के क्रियामंत्रगर्भ मे गर्भान्वय क्रियाओ के 53, दीक्षान्वय क्रियाओ के 48 और कर्त्रन्वय क्रियाओ के 8 भेदो का निर्देश करते उनका उपदेश केवल ब्राह्मण वर्ण के लिये दिया है। इन क्रियाओ मे एक लिपिसंख्यान क्रिया है इसके द्वारा तीन वर्ण के मनुष्य ही लिपिज्ञान के अधिकारी है, शूद्र अक्षरज्ञान का अधिकारी नही है। “महापुराण” के क्रियामंत्रगर्भ के उक्त उपदेश अनुसार शूद्र वर्ण मनुष्य पूजा, यज्ञोपवीत, लिपिज्ञान, मंदिर प्रवेश, अथितिसत्कार पूर्वक दान, धार्मिक कर्त्तव्य नही कर सकते है। “महापुराण” मे प्रतिपादित क्रियामंत्रगर्भ का “मनुस्म्रति” के आधार पर ही उल्लेख हुआ है।

इसमे सन्देह नही कि “महापुराण” के प्रयत्न से उत्तरकालिन जैन साहित्य मे जैन धर्म के प्रतिपादन की दिशा बदल गई, अपितु उसने अपने सर्वोपकारी व्यक्तिवादी गुणो को छोड़कर संकुचित वर्णवादी जाति धर्म का रूप ले लिया। “महापुराण” मे आचार्य जिनसेन ने कहा कि राजा भरत ने व्रती श्रावको को दानादि देकर ब्राह्मण वर्ण की स्थापना की। वर्तमान मे कितने ब्राह्मण है, जो जैन धर्म का पालन करते है? इसी प्रकार सूर्यवंश और चन्द्रवंश के लोग जैन धर्म के अनुयायी थे। जैन धर्म के सभी चौवीस तीर्थंकर क्षत्रिय थे। तीर्थंकर “महावीर” के वंशज आज भी विहार प्रान्त मे है। वर्तमान मे कितने क्षत्रिय है, जो जैन धर्म के अनुयायी दिखलाई देते है?

प्राचीन जैन ग्रन्थो मे मनुष्यो में श्रावक, श्राविका, मुनि और आर्यका ये चार श्रेणिया बताई है। अन्य प्रकार की वर्ण या जातियो का उल्लेख नही है। जैन गृहस्थ धर्म के 12 व्रत (पांच अणुव्रत और सात शीलव्रत) और मुनि धर्म के 28 मूलगुण बताये है। अष्ट मूलगुण-मद्य, मांस, मधु का त्याग, पांच उदम्बर फलो का त्याग, पंचपरमेष्ठी स्तवन, जीवदया, जलगालन, रात्रि भोजन त्याग का धारी श्रावक है। श्रावक के लिये बारह व्रत और ग्यारह प्रतिमा बतलाई है। इसके बाद मुनि धर्म है।

जैनधर्म : जातिया – उपजातिया
  1.   जैनियो मे जो जाति या उपजाति देखी जाती है वे सब हिन्दू धर्म के प्रभाववश है। जैनियो मे जाति प्रथा धर्म की अपेक्षा सामाजिक है। जैन धर्म जातियो को नही पहचानता है, जैन साहित्य, जैन समुदाय के लोगो द्वारा जाति नियमो के पालन को बाधित नही करता है।
  2.  जैनो मे जातियो को सम्मान के क्रमबद्ध क्रम मे व्यवस्थित नही किया गया है। विभिन्न जाति के सदस्यो के बीच सामाजिक सम्बन्धो पर भी कोई प्रतिबन्ध नही लगाया गया और इसके सदस्यो को व्यवसाय की स्वतंत्रता है।
  3.  यह कहा जा सकता है कि जब तक सगोत्र के नियमो का पालन जैनियो द्वारा किया जाता रहेगा तब तक जातियो, उपजातियो के खण्डीय विभाजन कायम रहेगा। जैन समुदाय की भावना की अपेक्षा जाती-उपजाति की भावना बनी रहेगी।
  4.  जैनियो की जातियो की वास्तविक संख्या ज्ञात नही है। एक कथानक अनुसार 84 जातिया है। पदमावती नगर के एक धनाढ्य ने केंद्रीय व्यापारिक संगठन के लिये विभिन्न प्रांतो से प्रतिनिधि आमंत्रित किये, ये संख्या में 84 थे तभी इनकी 84 जातिया बनी।
  5. व्यावसायिक हिन्दू जातियो के सदस्यो मे कुछ जैनधर्म के अनुयायी थे। इन्होने अपना समूह / उपजाति अलग बनाली। यह नही कहा जा सकता है कि ये जैनधर्म के अनुयायी रहे या इन्होने जैनधर्म ग्रहण कर लिया।
  6.  अन्य जानकारी अनुसार जैन सम्प्रदाय मे लगभग 100 से अधिक जातिया है। इनमे ओसवाल, श्रीमाल, अग्रवाल, खण्डेलवाल, परवार, सेतवाल, चतुर्था, पञ्चमा को छोड़कर शेष जातियो की संख्या बहुत कम है। चुकि ये सभी जातिया अंतर्विवाही है इसलिये कई सदस्यो के अविवाहित रहने के कारण उनकी आबादी तेजी से घट रही है। साठ जातियो की सदस्य संख्या 100 से भी कम है।
  7. जैन जातियो की आबादी में तेजी से गिरावट के कारण एक जाति का आत्मसात दूसरी मे पाते है। इसका मुख्य कारण यह है कि जाति का दूसरे धर्म में शामिल होने से बचाना है। जैसे वर्तमान मे “अथासक परवार” जाति दो जातियो का संयोजन हो सकता है, अर्थात अष्ट-शाख और परवार।

जैन सम्प्रदाय मे जातियो का कोई महत्त्व नही है और न ही साहित्य मे उसका कोई वर्णन है। इनका सृजन 1000 वर्ष पुराना ही है। ओसवाल, पोरवाल, हुमड़, नेमा, नरसिंगपुर ये दोनों दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदाय में पाये जाते है। भारत के विभिन्न क्षेत्रो मे विभिन्न जाति केन्द्रित है, जैसे श्रीमाली गुजरात मे; ओसवाल गुजरात और राजस्थान मे; अग्रवाल उत्तरप्रदेश और देहली मे; खण्डेलवाल मध्यप्रदेश विशेषकर मालवा और राजस्थान मे; हुमड़ गुजरात, राजस्थान मे; परवार मध्यप्रदेश विशेषकर बुन्देलखण्ड में; सेतवाल महाराष्ट्र विशेषकर विदर्भ और मराठवाड़ा मे; चतुर्था और पंचमा दक्षिण महाराष्ट्र और कर्नाटक मे केन्द्रित है।

 

यह प्राप्त तथ्यों पर आधारित है यदि कोई त्रुटि है तो इसके लिए चैनल जिम्मेदार नहीं होंगा, यदि किसी को इस संबंध में और जानकारी प्राप्त होती है तो तथ्यों के साथ हमें लिखकर भेज सकते हैं :- संपादक

Show More

Related Articles

Close