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धर्म

२१ जनवरी मौनी अमावास्या में क्या करे जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्राजी से

सनातन धर्म की जय हो। हमारे सनातन धर्म में चंद्रमा की गति और राशियों में इसके गोचर को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। चंद्रमा के चरणों के माध्यम से ही चंद्र मास में तिथि और त्योहारों को निर्धारित किया जाता है। चन्द्रमा हमेशा एक सामान नहीं रहता । शुक्ल पक्ष के दौरान चंद्रमा हर दिन धीरे-धीरे बढ़ता है और शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन पूर्णिमा पर अपने पूरे स्वरूप में होता है। वहीं, कृष्ण पक्ष में चंद्रमा का आकार कम होने लगता है और कृष्ण पक्ष का अंतिम दिन अमावस्या के रूप में मनाया जाता है।

ज्योतिष और धर्म जगत में अमावस्या के दिन दान-पुण्य और पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है। माघमासके कृष्णपक्षकी अमावास्याकी ‘मौनी अमावास्या’ के रूपमें प्रसिद्धि है। इस पवित्र तिथिपर मौन रहकर अथवा मुनियोंके समान आचरणपूर्वक स्नान-दान करने का विशेष महत्त्व है। मौनी अमावास्या के दिन त्रिवेणी अथवा गंगा में स्नान-दान करना चाहिए।

मौनी अमावास्या में क्या करे :

तैलमालकाचैव तीर्थे देयास्तु नित्यशः । ततः च। च प्रज्वालयेद्वहिं सेवनार्थे द्विजन्मनाम् ॥ कम्बलाजिनरत्नानि वासांसि विविधानि चोलकानि देयानि प्रच्छादनपटास्तथा ॥
अर्थात :
नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करके तिल, तिल का तेल, तिल के लड्डू, आँवला, वस्त्र आदिका दान करना चाहिये। ब्राह्मणों की सेवा के लिए आग भी जलानी चाहिए। इस दिन साधु, महात्मा तथा ब्राह्मणों को कम्बल आदि जाड़े के वस्त्र देने चाहिये।

इस दिन गुड़ में काला तिल मिलाकर लड्डू बनाना चाहिये तथा उसे लाल वस्त्र में बाँधकर ब्राह्मणों को देना चाहिये। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन करा कर उन्हें दक्षिणा देनी चाहिये।

मौनी अमावास्या को और विशेष क्या करे :
स्नान-दानादि पुण्य कर्मों के अतिरिक्त इस दिन पितृ श्राद्धादि करने का भी विधान है।

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