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जातिगत राजनीति करने वाले संगठन अनुराग त्यागी जी की मृत्यु पर मौन क्यों- दिव्य अग्रवाल
सिहानी गेट निवासी अनुराग त्यागी जी की देह 1600 डिग्री तापमान वाली उबलती हुई भट्टी में जीवित रहते हुए जलकर अग्नि में ही समाहित हो गयी, सोचिए कितना पीड़ादायक रहा होगा । त्यागी जी हापुड़ क्षेत्र की एक फैक्ट्री में कार्यरत थे जिसके मालिक का नाम आसिफ अली है । फैक्ट्री में ज्यादातर कर्मचारी मुस्लिम समाज के ही कार्य करते हैं । मुस्लिम समाज मे हिन्दुओ को जाती के आधार पर बांटकर नही देखा जाता उनके अनुशार तो दो ही समाज होते हैं एक इस्लामिक व् दूसरा गैर इस्लामिक । परन्तु हिन्दू समाज मे जातिगत महत्वकांशा सदैव प्रबल रहती है। बहूत सारे संगठनों का जन्म ही जातिगत राजनीति करने के लिए होता है । त्यागी समाज एक पराक्रमी समाज है इसमें कोई संदेह ही नही है हिन्दू धर्म के इस समाज ने राष्ट्र व धर्म के लिए सदैव बलिदान किया है परन्तु आज इस निर्मम हत्या पर वो सारे संगठन मौन क्यों है जो स्वम को सम्पूर्ण जाती का आधार मानते हैं। क्या जातिगत राजनीति करने वाले, उन दरिंदो से लोहा ले सकते हैं जिनकी लोहा पिघलाने वाली भट्टी में एक नवयुवा निर्दोष अनुराग त्यागी जी की पीड़ादायक मृत्यु हो गयी । क्या अनुराग त्यागी जी की दर्दनाक मृत्यु संगठनों के लिए सम्मान का विषय नही है । यदि वास्तव में संगठनों को समाज के अस्तित्व की लड़ाई लड़नी है तो उन विधर्मियो व दानवों के विरुद्ध लड़नी चाहिए जो आने वाली पीढ़ी को खाने के लिए नरभक्षी की तरह तैयार बैठे हैं। त्यागी संगठन हो या अन्य संगठन उन्हें राजनीति के स्थान पर इस बात की पंचायत करनी चाहिए की किसी भी विधर्मी को अपनी दुकान या मकान किराए पर नही देनी है , व्यापार नही करना है , उनके यहाँ नौकरी नही करनी है । यदि जातिगत राजनीति करने वाले लोग ऐसा नही कर सकते तो किसी को भी समाज के सम्मान की दुहाई देने का अधिकार नही है । कल्पना कीजिए साहब सनातनी परम्परा अनुशार अंतिम संस्कार के पश्चात तीसरे दिन तीजा होता है परन्तु यहां तो तीन दिन तपती भट्टी को ही शांत होने में लगेंगे । बड़ी बड़ी गाड़ियों में भृमण करने वाले सफेद कुर्ता पजामा पहनने वालो को न तो निर्मम हत्या से कुछ लेना है और न ही उन भगवा वस्त्रों से कुछ लेना है जिन्हें धारण करने वालो लोगो के जीवन का मुख्य उद्देश्य ही मानवता व धर्म की रक्षा करना है।