साहित्य उपवन
!! अहसास !!
जब कलुषित हृदय हर पल मद का हुंकार भरे,
जब तृषित मन की अभिलाषाओं से संदूकों का पल छिन पेट भरे।
तब आशा की मदमस्त फुहार का……………..
रह जाता कोई अर्थ नहीं।।
जब अर्धनग्न बालाओं का मन हर दिन चीत्कार करे,
जब रुदन पर मानव जाति का कंठ शोभा गान करे।
जब मर्दन की मर्यादा का हर पल सीमा लंघन हो,
तब मरण वरण और तारण का…………..
रह जाता कोई अर्थ नहीं।।
जब भातृ मातृ और तातशक्ति, परमशक्ति पर हावी हो,
जब अश्रु शक्ति से चक्षुओं का भर पाना ना काफी हो,
तब मानव और दानव की भिन्नता का…………..
रह जाता कोई अर्थ नहीं।।
जब रवि कवि और महर्षि को मान अपमान का भान ना हो,
जब व्यथा कथा और राम कथा से आनंद मन विख्यात ना हो।
ऐसी विरासती धरोहरों को दर्शाने का……………..
रह जाता कोई अर्थ नहीं
रह जाता कोई अर्थ नहीं।।।।।।।।।।।
(पारखी)
डॉ लता शर्मा