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जानकारी

सूरन की व्यावसायिक खेती लाभप्रद

सूरन की व्यावसायिक खेती लाभप्रद- प्रो .रवि प्रकाश

बलिया- सूरन न केवल सब्जी, अचार के लिए है, अपितु इसमें अनेक प्रकार के औषधीय तत्व भी मौजूद हैं। प्रसार्ड ट्रस्ट मल्हनी भाटपार रानी देवरिया के निदेशक डा. रवि प्रकाश मौर्य (सेवानिवृत्त वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक) ने सूरन की खेती हेतु सुझाव देते हुए बताया कि सूरन को ओल एवं जिमीकंद के नाम से भी जाना जाता है। यह एक औषधीय महत्व की सब्जी है।

औषधीय गुण- यह रक्त विकार,कब्ज नाशक, बवासीर ,खुजली,उदर सम्बन्धी बीमारियों के अलावा अस्थमा एवं पेचिस मे भी काफी लाभदायक है।

भूमि कैसी -सूरन की खेती के लिये बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है।

रोपाई का समय -रोपाई करने का सर्वोत्तम समय माह अप्रैल से जून तक है।

प्रमुख प्रजातियाँ- सूरन की प्रमुख प्रजातियाँ एन.डी.ए.-5 , एन.डी.ए-8, एवं गजेन्द्रा -1 है। यह प्रजातियाँ पूरी तरह से कड़वापन से मुक्त है । बीज,बीजोपचार -कंद की मात्रा कंद के आकार पर निर्भर करता है। आधा किलोग्राम से कम का कंद न रोपे । एक बिस्वा/ कट्ठा ( 125 वर्ग मीटर) क्षेत्रफल के लिये एक कुंन्टल कंद बीज की आवश्यकता होती है ।बीज के उपचार के लिये 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति लीटर पानी मे घोल दे तथा 20 से 25 मिनट तक उस घोल में कंद को डाल दे। उसके बाद निकालकर 10-15 मिनट तक छाया मे सुखाकर रोपाई करे।

खाद उर्वरक व रोपाई की विधि- रोपाई हेतु आधा -आधा मीटर की दूरी पर एक -एक फीट आकार का गडढ़ा खोदकर प्रति गड्ढे की दर से 3 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद, 20 ग्राम अमोनियम सल्फेट या 10 ग्राम यूरिया , 37.5 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट,एवं 16 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश डाल कर मिलाने के बाद कंद की रोपाई करें। रोपाई के 85 से 90 दिन उपरांत दूसरी सिंचाई- निकाई के बाद 10 ग्राम यूरिया प्रति पौधे मे डाले।

सिंचाई- नमी की कमी रहने पर हल्की सिंचाई करें। जल जमाव कभी न होने दे।

सुरन के साथ सह फसली खेती – सूरन के साथ लोबिया या भिण्डी की सह फसली खेती कर सकते है। आम ,अमरूद आदि के बागीचा मे सूरन लगाकर अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते है।

उत्पादन- बुआई मे प्रयुक्त कंदो के आकार ,बुआई के समय एवं देखभाल के आधार पर प्रति विश्वा 6-12 कुन्टल तक उपज 9-10 माह मे मिल जाती है।

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