राष्ट्रीय
लोकतंत्र पर शरियत भारी न जाने कब हो किसकी बारी – दिव्य अग्रवाल
गुजरात अहमदाबाद के धुन्धका में किशन भरवाड़ की हत्या मात्र इसलिए कर दी गयी क्योंकि उसके द्वारा कही कुछ बाते कटरपंथी मौलानाओं को इस्लाम के विरुद्ध लगी । किसी व्यक्ति की हत्या कर देना , गला रेत देना क्या लोकतंत्र की न्यायप्रणाली का हिस्सा हो सकती है ।भारत में क्या कटरपंथी विचारो का बारूद बिछाया जा रहा है ।
मौलाना कमर गनी उस्मानी जैसे लोग जब अपनी तकरीरों से युवा पीढ़ी में कट्टरपंथ का जहर घोलते है , गैर इस्लामिक लोगो का कत्ल करने हेतु लोगो को प्रेरित करते है तब भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को असहिष्णुता दिखाई क्यों नही देती है । हामिद अंसारी जी को अमेरिका में जाकर भारत के हिन्दुओ के विरुद्ध तो बोलना ध्यान रहा परन्तु इस देश मे कट्टरपंथ के नाम पर शरिया का जो प्रचलन / तांडव हो रहा है, गैर इस्लामिक लोगो की निर्मम हत्या हो रही है उसके विरुद्ध बोलना ध्यान नही रहा । भारत एक महान लोकतांत्रिक देश है परन्तु कटरपंथी लोग इस देश को शरिया के हिसाब से चलाना चाहते हैं लोगो के मन मे भय स्थापित करना चाहते हैं । ये उचित नही है । यदि इसी तरह भारत के युवा इन मौलानाओं की शिक्षा पर चलते रहे तो क्या भारत मे संविधान व लोकतंत्र जीवित रह पाएगा या शरिया के तहत भविष्य में हर उस व्यक्ति की बारी आएगी जिसकी बाते इन कटरपंथी मौलानाओं को अच्छी नही लगेगी या इस्लाम के विरुद्ध लगेगी ।इस विषय पर सरकारों को गंभीरता से विचार करना होगा ।