- आजादी के बाद से ही नहीं मिल सका है अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों को आरक्षण का लाभ
- मूंछों पर ताव देते कुर्सी पर बैठने के हसीन सपने देख रहे तमाम लोगों के ख्वाब टूटने के कगार पर
औरंगाबाद (बुलंदशहर ) प्रदेश में निकाय चुनावों की आहट अब खुलकर सुनाई देने लगी है। निकाय चुनाव सिर पर जान, दावेदार भी खुलकर सामने आने लगे हैं। सबसे ज्यादा उठा पटक सत्तारूढ़ भाजपा समर्थकों में दिखाई पड़ रही है। लगातार दो बार जीत का परचम फहराने के पश्चात लगातार दो चुनावों में पराजय का कलंक झेल चुकी भाजपा को खतरा विपक्षी दलों से उतना नहीं जितना खुद के आस्तीन के सांपों से बना हुआ है। भाजपा में गुटबाजी इतनी चरम पर है कि आजादी के अमृत महोत्सव जैसे राष्ट्रीय स्तर के उस प्रोग्राम में भी अपनी डफ़ली अपना राग अलापते दिखाई पड़े जिसका आवाहन किसी और नेता ने नहीं बल्कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया था।कहना गलत नहीं होगा कि यहां के छुटभैय्ए खुद को मोदी जी और योगी जी से भी महान समझने में कोई कोताही नहीं बरतते हैं।
यदि पिछले दो चुनावों का ही जिक्र किया जाये तो वर्ष 2012में भाजपा ने डा गजेन्द्र लोधी पर दांव आजमाया था जबकि जनमत युवा राजकुमार लोधी उर्फ राजू लोधी के पक्ष में स्पष्ट सुनाई पड़ रहा था। पार्टी द्वारा जनमत की अवहेलना करने से क्षुब्ध राजकुमार लोधी ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में ना केवल चुनाव लडा बल्कि चुनाव में फतह भी हासिल करके भाजपा नेताओं को आईना भी दिखाया था। मजे की बात यह रही थी कि भाजपा प्रत्याशी डॉ गजेन्द्र सिंह जीतना तो दूर अपनी जमानत तक जब्त करा बैठे थे। वह हजार का आंकड़ा भी पार कर पाने में सफल नहीं हो सके थे।
अगले चुनाव में भाजपा ने अपनी ग़लती सुधारते हुए चेयरमैन राजकुमार लोधी उर्फ राजू लोधी पर ही दांव लगाया था। इस चुनाव में *इस घर को आग लग गई घर के चिराग से* की तर्ज़ पर भाजपा के एक बड़े पदाधिकारी जिन्हें दो बार चेयरपर्सन अवार्ड से नवाजा जा चुका था और आपात वीर योद्धा सम्मान हासिल था पार्टी की क़ब्र खोदने में जुट गए थे। उन्होंने स्वजातीय प्रत्याशी को पार्टी उम्मीदवार के सामने खड़ा कर पार्टी का ही बैंड बजा डाला। और चेयरमैनी समाजवादी पार्टी को बतौर तोहफा भैंट करने में अहम भूमिका निभा डाली। महज सात वोट से हार की कसक पार्टी शायद ही कभी भुला पायेगी। जयचंद पहले भी थे आज भी कम नहीं है बल्कि कहना उचित होगा कि पहले जयचंद एक दो तक सीमित थे अब संख्या दर्जनों में पहुंच चुकी है।
भाजपा के नीति निर्धारकों को कसबे की भयंकर फूट और टांग खिंचाई नीति की जानकारी भली प्रकार है। इस लिए इस बार नगर पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी अनूसूचित जाति जनजाति के लिए आरक्षित होने जा रही है। नेतृत्व भली प्रकार जानता है कि यदि इस सीट पर विजय हासिल करनी है तो तलवार पैना रहे तमाम योद्धाओं पर लगाम लगानी ही होगी।
विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मिशन 24 की सफलता के लिए स्थानीय निकाय चुनावों में बेहतर प्रदर्शन और परिणाम अति आवश्यक हैं ।
भाजपा नेतृत्व इस बार इस सीट पर अनुसूचित जाति जनजाति के आरक्षण के एक ही तीर से सौ शिकार करने का मन बना चुका है। अनुसूचित जाति जनजाति को आरक्षण का लाभ दिया जाना भाजपा को बड़े फायदे का सौदा दिखाई पड़ रहा है। अनुसूचित जाति जनजाति के उम्मीदवार का चयन भाजपा के लिए अति सुगम भी रहेगा और फतह भी होगी । ऐसा मानकर चल रहे लोगों का कह ना है कि इस एक कदम से ना केवल खुद को चेयरमैन समझ रहे पार्टी कार्यकर्ताओं पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी बल्कि औरंगाबाद नगर पंचायत अध्यक्ष भी निश्चित रूप से भाजपा का ही होगा। ऊंट किस करवट बैठेगा यह वक्त ही सही प्रकार से बता पायेगा फिलहाल कयासों के दौर जारी हैं।
रिपोर्टर राजेंद्र अग्रवाल