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सूर्य के कोरोना ने भारतीय खगोलविदों को किया हैरान, जानिए क्या है रहस्य

सूर्य के कोरोना ने भारतीय खगोलविदों को किया हैरान, जानिए क्या है रहस्य

सूर्य की सतह स्थिर नहीं रहती है. वहां पर हमेशा ही कोई ना कोई गतिविधि चलती हरी रहती है. इस सक्रियता की वजह से ही सौरमंडल में चुंबकीय और विद्युतचुंबकीय प्रभावों के साथ भारी मात्रा में आवेशित कणों के विकरण भी फैलते हैं. ये गतिविधियां हमेशा ही एक सी नहीं रहती हैं. बल्कि एक चक्र की तरह कभी ज्यादा तो कभी कम होती हैं. भारतीय खगोलविदों (Indian Astronomers) ने सूर्य की सतह पर एक अप्रत्याशित बात देखी है. उन्होंने पाया है कि नए सौर चक्र में जहां सूर्य को ज्यादा सक्रिय होना था वह तुलनात्मक रूप से पिछले 12 सालों में शांत ही रहा.

क्या था अवलोकन

बेंगलुरू स्थित भारतीय खगोलभौतिकी संस्थान (IIA) के वैज्ञानिकों ने सूर्य की सतह पर साल् 2008 से 2019 तक की गतिविधियों की तुलना 1996 से लेकर 2007 तक की. उन्होंने पाया कि इस दौरान सूर्य की सतही गतिविधियां पहले की तुलना ज्यादा शांत थी. उन्होंने पाया कि 2008 से 2019 तक समय में सूर्य से निकलने वाले कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण (CME) भार, आकार और विस्फोटक परिघटना के दबाव, इस सभी के लिहाज से कम हो गया है.

उम्मीद के उलट ही

इसके साथ ही कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण का औसत त्रिज्या आकार भी कम होता दिखाई दिया है. यह सब उम्मीद बिलकुल ही उलट पाया गया है. उम्मीद की जा रही थीक् अंतरग्रहीय माध्या में दबाव के घटने से सीएमई का त्रिज्या आकार (Radial Size) में इजाफा देखने को मिलेगा. लेकिन ऐसा होने की जगह जो हुआ वह इसके ठीक विपरीत ही था.

सौर चक्र की गतिविधि

इस अध्ययन में शोधकर्ता 23वें और 24 वें सौर चक्र में कोरोनल मास इजेक्शन्स के विस्तार का बर्ताव और और उसके अंतरग्रहीय हिस्सों को समझने का प्रयास कर रहे थे. सूर्य की चुंबकीय गतिविधि हर 11 साल के दौर में तीन चरणों में बदलती है. इस दौरान वह बढ़ती है,अधिकतम पर पहुचंती है और फिर कम होने लगती है. इन सभी चरणों को एक सौर चक्र कहते हैं.

सौ सालों में सबसे कमजोर

साल 2008 से 20019 का समय 24वें सौर चक्र का था. इस दौरान वैज्ञानिकों ने पाया था कि यह दौर कमजोर ही रहा था यानि यह चक्र 23 (1996-2007) की तुलना में कमजोर था. इसके अलावा शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि पिछले 100 सालों की तुलना में सूर्य साल 2019 में सबसे कमजोर रहा था.

क्या होता है CME

कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण समय समय पर सूर्य से विशाल मात्रा में उत्सर्जित होने वाले प्लाज्मा संरचनाएं होते हैं. सूर्य पर विस्फोट के साथ होने वाली इन घटनाओं में अरबों टन का पदार्थ करोड़ों मील प्रति घंटा की गति से अंतरिक्ष में उत्सर्जित होता है. यह सौर पदार्थ अंतरग्रहीय माध्यम में प्रवाहित होता है और ग्रहों सहित रास्ते में आने वाले हर खगोलीय पिंड को प्रभावित करता है.

क्यों जरूरी है इनका अध्ययन

इन उत्क्षेपण को समझना बहुत जरूरी है क्योकि यह पृथ्वी की चुंबकीय मंडल में बड़ा व्यवधान पैदा करते है. वे पृथ्वी पास के अंतरिक्षीय वातावरण को प्रभावित करते है, उसकी निचली कक्षा में चक्कर लगा रहे उपग्रहों के क्रियाकलापों को बाधित करते हैं. इतना ही नहीं वे ग्लोबल पोजीशनिंग सिग्नल्स (GPS), लंबी दूरी के रेडियो संचार और पॉवर ग्रिड तक को प्रभावित करते हैं.

जानिए बाहरी अंतरिक्ष में होने वाली सामान्य लेकिन अजीब घटनाओं के बारे में

शोधकर्ताओं का कहना है कि यह जानकारी हैरान करने वाली इसलिए हैं क्योंकि आसपास का कम दबाव बताता है कि सीएमई का अंतरग्रहीय अंतरिक्ष में विस्तार हो रहा है. इससे इसका आकार बहुत बढ़ जाता है जिससे इसका त्रिज्या आकार भी बढ़ जाता है. लेकिन कम दबाव की भरपाई सीएमई के अंदर चुंबकीय पादर्थ ने कर दी जिसने सीएमई को विस्तार से रोक दिया. शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण को अगल अलग दूरी से अध्ययन करना जरूरी है जिसके लिए पार्कर सौर यान के जैसे बहुत से यानों की जरूरत होगी.

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