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राष्ट्रीय

संविधान के स्थान पर क्या मजहबी व्यवस्थायें प्रचलित होनी चाहिए – दिव्य अग्रवाल

विद्यालय में केवल मुस्लिम समाज की धार्मिक मान्यताओं के आधार पर ही क्यों अपितु सभी धर्म , पंत आदि परम्पराओ के आधार पर प्रवेश या शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिलना चाहिए ।

हिजाब यदि मुस्लिम समाज मे आवश्यक है तो हिन्दू समाज के वैष्णव पंत में शिशुओं को धोती , जनेऊ व चोटी धारण कर ऊपरी धड़ निर्वस्त्र रखकर पाठशाला जाने का प्रावधान है । शैव पंत मे गले व हाथों में रुद्राक्ष एवम माथे पर त्रिपुंड धारण करने का प्रावधान है , अघोरी पंत में पूरे शरीर पर मात्र एक वस्त्र धारण करने का प्रावधान है , नागा पंत में पूर्णतः निर्वस्त्र रहने का प्रावधान है , जैन पंत में भी एक वस्त्र से लेकर निर्वस्त्र रहने तक का भी प्रावधान है ।

दिव्य अग्रवाल
दिव्य अग्रवाल(राष्ट्रवादी लेखक व विचारक, गाजियाबाद)

अतः प्रश्न यह है कि क्या धार्मिक मान्यताओं का अनुशरण केवल निजी जीवन तक होना चाहिए या सार्वजनिक रूप से सभी लोगो को अपनी अपनी मान्यताओं के अनुपालन करने का अधिकार है । यदि बात धर्म की है तो मुस्लिम समाज के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म के शैक्षणिक संस्थान धार्मिक मान्यताओं के आधार पर भारत मे संचालित नही है । जबकि मुस्लिम समाज के मदरसों का संचालन स्पष्ट रूप से इस्लामिक मान्यताओं के आधार पर ही होता है । प्रायः मुस्लिम समाज के बहूत से बुद्धिजीवी संविधान, आजादी ,सेक्युलरिज्म आदि की बात करके अन्य धर्मों पर प्रश्न उठा देते है पर जब कोई यह कहता है कि देश की मुख्या एक दिन हिजाब वाली होगी , क्या तब यह प्रश्न नही उठना चाहिए की देश संविधान से चलेगा या मजहबी विचार से चलेगा।

हिजाब एक मजहबी बात हो सकती है परन्तु इस विचार को सार्वजनिक रूप से पूरे रास्ट्र पर थोपना उचित नही है क्योंकि यदि अन्य धर्मों के लोग भी अपनी अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुशार घर से बहार निकले तब किसी भी संवैधानिक स्थल की गरिमा कैसे सुरक्षित रह पाएगी । भारत को कट्टरवादिता की ओर ले जाने का अर्थ स्पष्ट है कि ऐसे लोग भारत को भी मजहबी विचारो की तरफ धकेलना चाहते हैं ।प्रत्येक घटना को राजनीतिक चश्मे से नही देखा जा सकता अपितु उसकी गम्भीरता को भी समझना आवश्यक है । जय श्रीराम का उदघोष कुछ लोगो के लिए यदि साम्प्रदायिक है तो नारा ऐ तकबीर अल्लाह हूँ अकबर क्या संवैधानिक वाक्य है जिसके हेतु बहूत से मजहबी लोग बच्चो को धन देकर पुरुस्कृत कर रहे हैं । मजहब के नाम पर कभी सड़को को घेरना , कभी रेलवे स्टेशनों पर स्थान कब्जाना , विद्यालयों में मजहबी सोच फैलाना , मजहब के नाम पर उपद्रव करना । इन सब प्रकरणों से क्या संविधान सुरक्षित रह सकता है । क्या सभ्य समाज संविधानिक रूप से जीवन का निर्वहन कर सकता है । जिस समाज को तालिबान के कटरपंथी क्रूर विचारो से भय लगता है उन्हें भी ऐसी मजहबी घटनाओं पर अवश्य विचार करना चाहिए ।

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