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प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे मे कहा- ‘वो इमरजेंसी भी इस इमरजेंसी से बेहतर थी’

प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे मे कहा- ‘वो इमरजेंसी भी इस इमरजेंसी से बेहतर थी’

नई दिल्ली: दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण को लेकर कल सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रवैया अपनाया. सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण को लेकर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों पर तीखी टिप्पणी की. सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि वो इमरजेंसी भी इस इमरजेंसी से बेहतर थी. आज स्थिति बदतर है. दरअसल प्रदूषण को लेकर दो दिन पहले हेल्थ इमरजेंसी घोषित की गई थी. साल 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से देश में इमरजेंसी लागू की गई थी. सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी उसी के संबंध में थी.

सुप्रीम कोर्ट ने और क्या-क्या टिप्पणी की?

पराली जलाने की किसी भी घटना के लिए प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों को जवाबदेह ठहराया जायेगा.
हम कई सालों से इस मसले पर निर्देश दे रहे हैं. लेकिन राज्य सरकारें हमारे निर्देशों के पालन में नाकाम रही हैं. इन सरकारों का मकसद सिर्फ चुनाव जीतना है.
लोगों के जीवन के अधिकार का हनन हो रहा है. उनके स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा है. घर के अंदर भी हवा शुद्ध नहीं है. लेकिन सरकारों का ध्यान इस तरफ नहीं है.
यह परेशान करने वाली बात है कि हर साल 10 से 15 दिनों तक दिल्ली के लोगों का दम घोटा जाता है. लेकिन इस बारे में कोई कुछ नहीं कर रहा है.
हम ऐसी स्थिति को जारी नहीं रहने दे सकते. पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पराली जलाने की घटनाएं होती हैं.
हम यह साफ कर देना चाहते हैं अब से ऐसी एक भी घटना अगर होती है तो उसके लिए मुख्य सचिव से लेकर ग्रामपंचायत तक एक एक सरकारी अधिकारी को इसके लिए जिम्मेदार माना जाएगा. उस पर कोर्ट सख्त कार्रवाई करेगा.
राज्य सरकारों ने पराली जलाने वालों के खिलाफ करवाई क्यों नहीं की.
जिन लोगों को दूसरों का जीवन खतरे में डालने में संकोच नहीं होता, हमें उनसे कोई सहानुभूति नहीं है. उनके ऊपर सख्त कार्रवाई की जाए.
ग्राम प्रधानों को भी भागीदार बनाया जाए. अगर वह अपने गांव में ऐसी घटना रोकने में असफल रहते हैं, तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाए.
इस तरह की स्थिति 1 दिन क्या 1 घंटे के लिए भी स्वीकार नहीं की जा सकती. दिल्ली में रहने वाले करोड़ों लोगों को यहां से बाहर तो नहीं भेजा जा सकता. दुनिया के किसी भी देश में इस तरह की स्थिति बर्दाश्त नहीं की जाती. आखिर भारत में ही ऐसा क्यों हो रहा है?

सुप्रीम कोर्ट ने क्या आदेश दिए?

सुप्रीम कोर्ट ने EPCA की सिफारिशों के आधार पर दिल्ली में ट्रकों का प्रवेश फिलहाल रोकने, दिल्ली-एनसीआर में हर तरह का निर्माण कार्य रोकने और डीजल जनरेटर का इस्तेमाल फिलहाल बंद करने का भी आदेश दिया है.

धूल पर नियंत्रण के लिए बड़े पैमाने पर स्प्रिंकलर के इस्तेमाल का भी आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया.

पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिवों को पेश होने का आदेश.

केंद्र सरकार को हर साल बनने वाली इस स्थिति पर लगाम लगाने के लिए रोडमैप पेश करने का आदेश. कोर्ट ने इसके लिए तीन हफ्ते दिए हैं.

ऑड-ईवन से प्रदूषण कैसे रुकेगा?- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार की और ऑड इवन पॉलिसी पर सवाल उठाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘’हमें यह बताया गया है कि थ्री व्हीलर भी बहुत ज्यादा प्रदूषण करते हैं. लोगों को घर से कार निकालने से तो रोका जा रहा है. लेकिन वह इसके बदले टैक्सी, थ्री व्हीलर या टू व्हीलर का इस्तेमाल कर रहे हैं. इससे प्रदूषण कैसे रुकेगा? दिल्ली सरकार के पास क्या आंकड़े हैं? उसकी क्या नीति है? जरूरत इस बात की है कि सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दिया जाए. सिर्फ कुछ कारों को घर से निकालने से रोक देना हल नहीं हो सकता. शुक्रवार तक दिल्ली सरकार हमें इस बारे में अपनी नीति बताए.”

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