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अगर भारत ने बदली अपने इस ऊंट की चाल तो लद्दाख में मात खाएगा चीन…

वर्तमान स्थिति में लद्दाख का बैक्ट्रियन कैमल उत्पादकता और सेना दोनों के लिहाज फिट बैठता है. बैक्ट्रियन कैमल में विशेष रूप से नुब्रा घाटी और लद्दाख को समृद्ध बनाने की क्षमता है.

चीन और भारत के बीच तनातनी जारी है. पहले चीन से आए कोरोना वायरस ने देश की परेशानी बढ़ाई, फिर लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर चीनी सेना ने नापाक हरकत करके उलझन में डाला. हालांकि भारत दोनों ही मोर्चे पर चीन को मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है, लेकिन अब बारी चीनी अर्थव्यवस्था से मुकाबले की है और भारतीय सामरिक तैयारियों में लद्दाखी बैक्ट्रियन ऊंट के इस्तेमाल की भी.

कोरोना काल में लॉकडाउन की वजह से तमाम देशों की तरह भारत की अर्थव्यवस्था भी लड़खड़ाई है, लेकिन 1979 में आर्थिक सुधार के बावजूद चीन भी आर्थिक मोर्चे पर औंधे मुंह गिरा है. रहा सवाल LAC पर तनातनी से गिरती अर्थव्यवस्था का, तो भारत के लिए बैक्ट्रियन कैमल गेम चेंजर साबित हो सकते हैं. बैक्ट्रियन कैमल पर कभी सिल्क रूट का पूरा व्यापार निर्भर करता था, लेकिन अब इसे हेरिटेज एनिमल की श्रेणी में शुमार करने की डिमांड रिसर्च इकोनॉमिस्ट शेली शौर्य ने की है. इसे लेकर शेली ने पीएमओ और अन्य मंत्रालय को लेटर लिखा है.

क्यों खास है बैक्ट्रियन कैमल?

वर्तमान स्थिति में लद्दाख का बैक्ट्रियन कैमल उत्पादकता और सेना दोनों के लिहाज फिट बैठता है. बैक्ट्रियन कैमल में विशेष रूप से नुब्रा घाटी और लद्दाख को समृद्ध बनाने की क्षमता है. वह सेना के लिए ऐसी जगहों पर भी अच्छे ट्रांसपोर्टर के तौर पर काम आ सकता है, जहां वाहनों की आवाजाही संभव नहीं है. इसे अपने बेड़े में शामिल करने पर सेना पहले ही विचार कर चुकी है.

दरअसल, पिछले कुछ सालों से चीन की सेना पैंगोंग झील के किनारे सड़कें बना रही है. 1999 में जब पाकिस्तान से करगिल की लड़ाई चल रही थी, उस समय चीन ने मौके का फायदा उठाते हुए भारत की सीमा में झील के किनारे पर 5 किलोमीटर लंबी सड़क बना ली थी. अब भारत की तरफ से भी सड़क निर्माण किया जा रहा है, जिससे चीन बौखलाया हुआ है. पैंगोंग झील के किनारे कुछ रास्ते ऐसे हैं, जहां वाहनों की आवाजाही मुश्किल है.

नेशनल प्रोडक्टिविटी काउंसिल और सेंट्रल सिल्क बोर्ड के कंसल्टेंट शेली शौर्य ने बताया कि बैक्ट्रियन कैमल भारत में सिल्क रूट व्यापार के अंतिम प्रतीक चिह्नों में से एक है. ये एक ऐसा जानवर है, जो खारा पानी पी सकता है और रस्सी, कपड़ा, कांटेदार भोजन तक पचा सकता है. पैंगोंग झील का पानी भी खारा है, ऐसे में बैक्ट्रियन कैमल सेना के लिए और उपयोगी हो जाता है.

2002 में महज 200 थी संख्या, नुब्रा घाटी वालों ने बचाया !

शेली ने बताया कि दो-कूबड़ वाले बैक्ट्रियन कैमल लंबे समय तक बिना पानी के रह सकते हैं और यह 60-65 लीटर तक पानी जमा कर सकते हैं. यह भोजन को अपने कूबड़ में संग्रहीत करते हैं. दो कूबड़ होने के कारण ये एक कूबड़ वाले से ज्यादा प्रभावी हो जाते हैं. ये एक वक्त विलुप्त होने की कगार पर थे, लेकिन नुब्रा घाटी के लोगों ने इसे बचाने का महत्त्वपूर्ण काम किया, वो भी खुद के बलबूते.

2003 में इनकी संख्या भारत में मात्र 200 के आसपास थी, लेकिन अब ये 1400 से ज्यादा हो गए हैं. लद्दाखी बैक्ट्रियन कैमल के आनुवांशिक अध्ययन से साबित होता है कि भारत के बैक्ट्रियन कैमल का उत्परिवर्तन बहाव संतुलन में है, इसलिए ये एक नई उप प्रजाति के रूप में लद्दाख और भारत के लिए अनूठा है. इसे लेकर लद्दाख सांसद जामयांग तेशरिंग नमग्याल से भी बातचीत चल रही है.

65 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ते हैं ये ऊंट

उन्होंने बताया कि बैक्ट्रियन ऊंट बहुत अच्छे वॉकर और तेज धावक होते हैं, जो 65 किलोमीटर प्रति घंटे की गति तक से दौड़ सकते हैं. उनके पास घंटों तक चलने की क्षमता है और प्रति दिन लगभग 50-60 किलोमीटर की दूरी तय करने वाली एक अच्छी गति बनाए रख सकते हैं. साथ ही 170-240 किलोग्राम के बीच भार ले जा सकते हैं. शेली ने कहा कि लद्दाख के बैक्ट्रियन कैमल्स में नुब्रा घाटी के अर्थशास्त्र को बदलने की दमदार क्षमता है. भयंकर ठंड को आसानी से सहने और बर्फ पर तेजी से चलने वाले इस लद्दाखी कैमल के बालों से शॉल और स्वेटर, अन्य कपड़े बनाए जा सकते हैं. इनकी कीमत पश्मीना की तरह होगी, बल्कि उससे ज्यादा भी जा सकती है.

शुगर के मरीजों के लिए दूध है फायदेमंद

बैक्ट्रियन कैमल का दूध भी काफी फायदेमंद होता है. शेली शौर्य ने बताया कि बैक्ट्रियन कैमल्स की स्तनपान अवधि बहुत लंबी (लगभग 14 से 16 महीने) है. यदि इसकी अच्छे से देखभाल की जाए तो औसतन 5 से 7 लीटर दूध प्रतिदिन मिलता है. इसके 1 लीटर दूध की कीमत 2500 से 3500 रुपये के बीच आंकी गई है. ऑनलाइन ऊंट के स्किम्ड मिल्क पाउडर के 80 ग्राम के पैकेट की कीमत 710 से 1400 रुपये तक है. शुगर के मरीज के लिए बैक्ट्रियन कैमल का दूध सबसे फायदेमंद होता है. इसके चीज (cheese) का भाव भी 20 हजार रुपये प्रति किलो से ज्यादा पहुंच सकता है. विदेशों में इनकी बहुत मांग है.

क्यों है बैक्ट्रियन कैमल पर विचार करने की जरूरत ?

शेली का मानना है कि सिल्क यानी कपड़ा मंत्रालय को बैक्ट्रियन कैमल को भारतीय राष्ट्रीय सिल्क विरासत पशु घोषित करना चाहिए, क्योंकि एक वक्त सिल्क रूट पर यही बैक्ट्रियन कैमल चलता था और लद्दाख से होकर आगे PoK होते हुए कजाकिस्तान, इजिप्ट व यूरोप तक चला जाता था. ह्वेनसांग और फाह्यान जैसे खोजी चीनी यात्री उस जमाने में सिल्क रूट से बैक्ट्रियन कैमल के ही सहारे भारत पहुंचे थे.

वेनिस से इतालवी यात्री मार्कोपोलो भी बैक्ट्रियन कैमल के सहारे भारत आया था. सिल्क रूट पर पड़ने वाले चीन के कुछ शहर काशी, तर्पण, कासघर, डुन्हुअंग या धनु-अंग आज भी हैं. खरोष्ठी और अन्य लिपियां भी मिली हैं. ऐसे में चीन को यह नहीं भूलना चाहिए कि उसकी सभ्यता और आर्थिक विकास में भारत का बहुत बड़ा योगदान रहा है.

शेली ने कहा कि National Productivity Council , Ministry of Commerce and Industry इसे हेरिटेज एनिमल घोषित करने पर विचार कर सकता है और Ministry of Fisheries, Animal husbandry and Dairing को भी घोषित करना चाहिए. वहीं, इस रिसर्च के बाद से केंद्रीय सिल्क बोर्ड के मेंबर सेक्रेट्री राजित ओखंडियार, ट्राईफेड के एमडी प्रवीर कृष्ण, राष्ट्रीय उत्पादकता काउंसिल के डीजी अरुण झा की ओर से बैक्ट्रियन कैमल को लेकर पहल शुरू कर दी गई है. .

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