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राष्ट्रीय

मजहबी जेनोसाइड से बचाव हेतु हम कितने तैयार हैं ?- दिव्य अग्रवाल

दा कश्मीर फाइल में कश्मीरी पंडितों के साथ जिहाद के नाम पर हुई बर्बरता की जिस सच्चाई को दिखाया गया है । उसे देखते समय पूरी देह असहाय व स्थिर हो जाती है। इस घटना को देखते हुए सिनेमा हॉल में आत्मा ठिठुर सी जाती है , सिनेमा हॉल में बैठे हुए परिवार की चिंता होने लगती है , घर की महिलाओं का हाथ पकड़कर उन्हें यह अहसास दिलाना पड़ता है कि डरो मत हम हैं। वेदना मौन हो जाती है , जो कहने के स्थान पर सिर्फ महसूस की जा सकती है ।

वास्तव में इस मजहबी जिहाद के जेनोसाइड को किस तरह कश्मीरी पंडितों ने झेला होगा इसकी कल्पना वतकुलुनित थियेटर में बैठकर कोल्ड ड्रिंक्स के चुस्कियों के साथ समझा नही जा सकता है। । क्या हमने अपने बच्चो को जन्म किसी नेता या राजनीतिक दल के भरोसे दिया है जो हम अपने परिवारों की सुरक्षा हेतु मात्र राजनीती के भरोसे है ।

दिव्य अग्रवाल
दिव्य अग्रवाल(राष्ट्रवादी लेखक व विचारक, गाजियाबाद)

हिन्दुओ की संख्या निरन्तर घटना , पारिवारिक व सामाजिक सम्बन्धो का समाप्त होना , पाश्चत्य संस्कृति पर जीवन आधारित होना , बिटियाओ के पास शास्त्र व आत्मरक्षा हेतु शस्त्र शिक्षा के स्थान पर कुछ भद्दे गानो पर नृत्य करना , घर के पुरुषों का ध्यान सुरक्षा व वंश व्रद्धि के स्थान पर मात्र लैविश लाइफ जीने पर केंद्रित होना , शारीरिक व मानसिक रूप से हमारे बच्चो व महिलाओं का कमजोर होना , एवम अपने धर्म व शास्त्रों के प्रति अरुचि होना । क्या इस तरह की जीवनशैली से भविष्य में होने वाले किसी भी सम्भावित जिहादी या अमानवीय जेनोसाइड से हमारा बचाव हो सकता है । कुछ युवा इस घटना को देखते हुए थियेटर में आपसी छींटाकशी व हसी ठिठोली करते नजर आए । क्या वास्तव में ऐसे युवा इस घटना की गंभीरता को समझ रहे हैं जिसे जनता तक पहुचने में ही 32 साल लग गए । महापुरुषों का जन्म होता है उनके जीवन से कुछ सीखकर अपने जीवन मे आत्मसार करने के लिए। ना कि उन महापुरुषों पर बोझ बनकर सारी जिम्मेदारी उनके ऊन पर थोपने के लिए । अर्थात सत्ताओं का परिवर्तन होता रहता है परन्तु आवश्यकता इस बात की है कि प्रजा भी इतनी सक्षम व मजबूत हो जो किसी भी विपत्ति का सामना करने के लिए तत्तपर हो जिससे रास्ट्र व रास्ट्र की जनता संरक्षण एवम स्वाभिमान व सम्मान जीवित रह सके ।आश्चर्य तब हुआ जब थियेटर में इस घटना को देखते हुए कुछ युवा थियेटर में राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप करते हुए नारे लगा रहे थे । यह बहूत ही दुःखद एवम अकल्पनीय प्रकरण था अतः इस लेख के माध्यम से उन सभी युवाओं व सेक्युलर लोगो को परामर्श है की इस सत्य घटना को देखकर गंभीर रूप से आत्मचिंतन करें , अपने बच्चो को लैविश लाइफ के लिए नही अपितु सुरक्षित जीवन हेतु प्रेरित करें। सबसे महत्वपूर्ण बात की अपने परिवार व सामाजिक सम्बन्धो को इतना सशक्त अवश्य करें जिससे विप्पति काल मे सब एक दूसरे ले लिए संरक्षण हेतु निडरता के साथ खड़े हो सकें । क्योंकि धन उपार्जन के चक्कर मे धन तो जोड़ा जा सकता है पर संरक्षण कैसे होगा इसकी सीख कश्मीरी पंडितों से अवश्य लेनी चाहिए। जिन्हें अपनी अकूत संपति , संसाधन , घर , बहु बेटियों तक को छोड़कर पलायन करने पर मजबूर होना पड़ा।

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