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राष्ट्रीय

भारतीय अंतरिक्ष संस्थान को मिली बडी कामयाबी ,बदल देगी इतिहास

भारतीय सैटेलाइट एस्ट्रोसैट ने अंतरिक्ष में की दुर्लभ खोज, वैज्ञानिक बोले ये इतिहास बदल देगा

पहले भारतीय मल्टी वेवलेंथ सैटेलाइट एस्ट्रोसैट ने अंतरिक्ष में एक दुर्लभ खोज की है. उसने सुदूर आकाशगंगा से निकलने वाली तीव्र पराबैंगनी यानी अल्ट्रावायलेट किरणों का पता लगाया है. यह आकाशगंगा धरती से 9.3 अरब प्रकाश वर्ष दूर है. पुणे स्थित इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफीजिक्स (IUCAA) ने बताया कि उसके नेतृत्व में यह उपलब्धि एक वैश्विक टीम ने हासिल की है.

IUCAA ने कहा कि भारत के पहले मल्टी वेवलेंथ उपग्रह एस्ट्रोसैट के पास पांच विशिष्ट एक्सरे व टेलीस्कोप उपलब्ध हैं. ये एकसाथ काम करते हैं एस्ट्रोसैट ने एयूडीएफएस-01 नामक आकाशगंगा से निकलने वाली तीव्र पराबैंगनी किरण का पता लगाया है. यह पृथ्वी से 9.3 अरब प्रकाश वर्ष दूर है. (फोटोः ISRO/AstroSat)

AstroSat make rare discovery

IUCAA में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कनक शाह ने बताया कि एक वर्ष में प्रकाश द्वारा तय की जाने वाली दूरी को प्रकाश वर्ष कहा जाता है. यह करीब 95 खरब किलोमीटर के बराबर है. तीव्र पराबैंगनी किरण की खोज करने वाली वैश्विक टीम का नेतृत्व डॉ. कनक शाह ने किया. उनकी टीम के शोध का प्रकाशन 24 अगस्त को ‘नेचर एस्ट्रोनॉमी’ नामक मैगजीन में भी छपा है. (प्रतीकात्मक फोटो)

AstroSat make rare discovery

इस टीम में भारत, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, अमेरिका, जापान और नीदरलैंड्स के वैज्ञानिक शामिल हैं. ये अल्ट्रावायलेट किरणें साल 2016 के अक्टूबर महीने में लगातार 28 दिनों तक दिखाई पड़ती रही थीं. लेकिन इनकी एनालिसिस करने में वैज्ञानिकों को दो साल से ज्यादा लग गए.

IUCAA के निदेशक डॉ. सोमक रायचौधरी ने कहा कि सुदूर अंतरिक्ष की अंधेरी गहराइयों में आज भी रोशनी की किरणें तैर रही हैं. हमें उन्हें खोजने में समय लगता है. लेकिन इन सब जानकारियों से हमें ये जानने में मदद मिलेगी कि धरती और अंतरिक्ष की उत्पत्ति की शुरुआत, उनकी उम्र और उनके खत्म होने की संभावित तारीख क्या होगी.  (प्रतीकात्मक फोटो)

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वैज्ञानिकों का मानना है कि कुछ छोटी आकाशगंगाएं मिल्की-वे आकाशगंगा की तुलना में 10-100 गुना अधिक गति से नए तारों का निर्माण करती हैं. बता दें कि ब्रह्मांड की अरबों आकाशगंगाओं में बड़ी संख्या में ऐसी छोटी आकाशगंगाएं हैं जिनका द्रव्यमान मिल्की-वे आकाशगंगाओं की तुलना 100 गुना कम है.

दो भारतीय दूरबीनों के जरिए वैज्ञानिकों ने अपने अध्‍ययन में पाया कि इन आकाशगंगाओं के इस विचित्र व्‍यवहार की वजह उनमें अव्यवस्थित हाइड्रोजन का वितरण और आकाशगंगाओं के बीच की टक्कर है. वैज्ञानिकों का कहना है कि हाइड्रोजन किसी भी तारे के निर्माण के लिए जरूरी तत्व है. बड़ी संख्‍या में तारों के निर्माण के लिए आकाशगंगाओं में हाइड्रोजन के उच्च घनत्व की जरूरत होती है.

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