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धर्म

धर्म चर्चा :ओंकारेश्वर दर्शन जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा जी से

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव का चौथा ज्योतिर्लिंग है। मान्यता है कि सावन के महीने में ज्योतिर्लिंग के नाम लेने से ही कई प्रकार के कष्ट समाप्त हो जाते हैं। सावन के महीने में ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश में स्थित है। जहां पर बाबा ओंकारेश्वर स्थित है। उसके समीप नर्मदा नदी बहती है। पहाड़ी के चारों ओर नदी बहने से यहां ओम का आकार बनता है। कहा जाता है कि ओम शब्द की उत्पति ब्रह्मा जी के मुख से हुई है। विशेष बात ये है कि यह ज्योतिर्लिंग औंकार अर्थात ओम का आकार लिए हुए है। इसी कारण इस ज्योतिर्लिंग को ओंकारेश्वर कहा जाता है।

सावन में पूजा का विशेष है महत्व

सावन के महीने में इस ज्योतिर्लिंग दर्शन और पूजा कराना बहुत ही शुभ माना जाता है.। ओंकारेश्वर में ज्योतिर्लिंग में भगवान के दो रूपों की पूजा की जाती है.। यहां पर ओंकारेश्वर और ममलेश्वर की पूजा होती है। शिव पुराण में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को परमेश्वर लिंग कहा गया है।
शिवजी की जटा से निकली कावेरी नदी

पौराणिक कथा के अनुसार धनपति कुबेर भगवान के परम भक्त थे। कुबेर ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। इसके लिए उन्होंने एक शिवलिंग स्थापित किया। भगवान शिव कुबेर की भक्ति से प्रसन्न हुए और कुबेर को देवताओ का धनपति बना दिया।
भगवान शिव ने कुबेर के स्नान के लिए अपनी जटा के बाल से कावेरी नदी उत्पन्न की थी। यही नदी नर्मदा में मिलती है। यहां पर कावेरी ओमकार पर्वत का चक्कर लगते हुए संगम पर वापस नर्मदा से मिलती हैं। जिसे नर्मदा और कावेरी का संगम कहा जाता है। चातुर्मास के समाप्त होने के बाद धनतेरस पर विशेष पूजा की जाती है। कहा जाता है कि माता नर्मदा नर्मदा ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर का जलाभिषेक करती हैं।सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इस ज्योतिर्लिंग का निर्माण किसी मनुष्य ने नहीं किया है बल्कि यह प्राकृतिक शिवलिंग है।

सावन और शिव से जुड़ी कथा
सावन महीने के बारे में सबसे प्रचलित पौराणिक कथा के मुताबिक शिव पत्नी देवी सती के अपने पिता दक्ष के घर योगशक्ति से शरीर त्यागने से पूर्व उन्होंने शिव जी को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। इसीलिए उन्होंने अपने दूसरे जन्म में पार्वती के रूप में भगवान शिव जी की पूजा की और सावन के महीने में कठोर तप किया। इस पूजा से प्रसन्न होकर शिवजी ने उनसे विवाह कर लिया। तभी से ये महीना शिव जी के लिए प्रिय हो गया। ये कथा स्वयं शिजी ने सनत कुमारों को सुनाई थी जब उन्होंने सावन का महीना प्रिय होने के बारे में पूछा था। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि सावन के महीने में भगवान शिव जी ने समुद्र मंथन से निकला विष पीकर सृष्टि की रक्षा की थी। यहीं कारण है कि इस महीने को शिव जी का प्रिय महीना माना जाता है।चौथा ज्योतिर्लिंग : ओंकारेश्वर

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव का चौथा ज्योतिर्लिंग है। मान्यता है कि सावन के महीने में ज्योतिर्लिंग के नाम लेने से ही कई प्रकार के कष्ट समाप्त हो जाते हैं। सावन के महीने में ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश में स्थित है। जहां पर बाबा ओंकारेश्वर स्थित है। उसके समीप नर्मदा नदी बहती है। पहाड़ी के चारों ओर नदी बहने से यहां ओम का आकार बनता है। कहा जाता है कि ओम शब्द की उत्पति ब्रह्मा जी के मुख से हुई है। विशेष बात ये है कि यह ज्योतिर्लिंग औंकार अर्थात ओम का आकार लिए हुए है। इसी कारण इस ज्योतिर्लिंग को ओंकारेश्वर कहा जाता है।

सावन में पूजा का विशेष है महत्व

सावन के महीने में इस ज्योतिर्लिंग दर्शन और पूजा कराना बहुत ही शुभ माना जाता है.। ओंकारेश्वर में ज्योतिर्लिंग में भगवान के दो रूपों की पूजा की जाती है.। यहां पर ओंकारेश्वर और ममलेश्वर की पूजा होती है। शिव पुराण में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को परमेश्वर लिंग कहा गया है।
शिवजी की जटा से निकली कावेरी नदी

पौराणिक कथा के अनुसार धनपति कुबेर भगवान के परम भक्त थे। कुबेर ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। इसके लिए उन्होंने एक शिवलिंग स्थापित किया। भगवान शिव कुबेर की भक्ति से प्रसन्न हुए और कुबेर को देवताओ का धनपति बना दिया।
भगवान शिव ने कुबेर के स्नान के लिए अपनी जटा के बाल से कावेरी नदी उत्पन्न की थी। यही नदी नर्मदा में मिलती है। यहां पर कावेरी ओमकार पर्वत का चक्कर लगते हुए संगम पर वापस नर्मदा से मिलती हैं। जिसे नर्मदा और कावेरी का संगम कहा जाता है। चातुर्मास के समाप्त होने के बाद धनतेरस पर विशेष पूजा की जाती है। कहा जाता है कि माता नर्मदा नर्मदा ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर का जलाभिषेक करती हैं।सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इस ज्योतिर्लिंग का निर्माण किसी मनुष्य ने नहीं किया है बल्कि यह प्राकृतिक शिवलिंग है।

सावन महीने के बारे में सबसे प्रचलित पौराणिक कथा के मुताबिक शिव पत्नी देवी सती के अपने पिता दक्ष के घर योगशक्ति से शरीर त्यागने से पूर्व उन्होंने शिव जी को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। इसीलिए उन्होंने अपने दूसरे जन्म में पार्वती के रूप में भगवान शिव जी की पूजा की और सावन के महीने में कठोर तप किया। इस पूजा से प्रसन्न होकर शिवजी ने उनसे विवाह कर लिया। तभी से ये महीना शिव जी के लिए प्रिय हो गया। ये कथा स्वयं शिजी ने सनत कुमारों को सुनाई थी जब उन्होंने सावन का महीना प्रिय होने के बारे में पूछा था। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि सावन के महीने में भगवान शिव जी ने समुद्र मंथन से निकला विष पीकर सृष्टि की रक्षा की थी। यहीं कारण है कि इस महीने को शिव जी का प्रिय महीना माना जाता है।

रिपोर्ट -ओम प्रकाश गोयल( मुख्य संपादक ग्लोबल न्यूज़ 24 ×7)

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