राष्ट्रीय
नरसंघार की सत्यता को समाज तक पहुँचाना किसी धर्मसेवा से कम नही- दिव्य अग्रवाल
कश्मीर फाइल मात्र एक पिक्चर नही है बल्कि उस नरसंघार के नंगे नाच की सत्यता को उजागर करने वाली कथा है। जिसको पिछले 32 वर्षों से किसी भी फिल्म निर्माता ने छुआ तक नही । जब छोटे छोटे बच्चो को काटा गया , घर के युवाओं की निर्मम हत्या की गयी , घर की बहू बेटीयो के साथ सामूहिक बलात्कर कर उनके शरीर के अंगों को धारधार हथियारों से काटकर सार्वजिनक रूप से लटका दिया गया ।तब किसी लेखक ने , फिल्म निर्देशक व निर्माता ने इतनी हिम्मत नही दिखायी की इस विभत्स कुकृत्य को समाज के समक्ष व अंतरराष्ट्रीय पटल पर रख सखे । जिस वक्त ये घटनाएं हुई उस समय सत्ताएं मौन थी ,मानवाधिकार मौन था , बुद्धिजीवी मौन थे । वर्तमान में दिल्ली दंगे भी ऐसी घटनाओं का जीवंत उदहारण है। जिसमे मरने वाले हिन्दू परिवारों के साथ साथ उनके घर के जीवित व्यक्ति जेलों में आज भी निरअपराध सजा काट रहे हैं । उन हिन्दू परिवारों का घर खर्च भी चलना असम्भव है। पर यहां भी सब चुप्पी साधे हुए हैं। जब लेखकों की कलम शांत हो जाती है , विचारकों की जुबान बिक जाती है , मीडिया सत्ता के समक्ष झुक जाती है । तब मानवता की हत्या होता देख भी सारी कायनात मौन धारण कर लेती है । अतः किसी मंदिर में दान या भंडारा करने से भी श्रेष्ठ कर्म यह है कि उन लोगो को शक्ति व बल प्रदान किया जाए जो सत्य को प्रसारित करने की हिम्मत दिखाते हैं। किसी रेस्टॉरेन्ट में एक हजार रुपये का भोजन हम सहज ही खा लेते है तो क्यों ना इस सत्य घटना को टिकट खरीद कर स्वम् भी देखे एवम कम से कम ऐसे दो लोगो को भी दिखाए जो किसी सिनेमा हॉल में टिकट नही खरीद सकते ।
आपको ध्यान होगा मशहूर संगीतकार गुलशन कुमार की हत्या मात्र इसलिए कर दी गयी थी क्योंकि वो अपने संगीतो के माध्यम से धर्म का प्रचार व प्रसार दोनो कर रहे थे । उनके बाद किसी भी संगीतकार की आज तक इतनी हिम्मत नही हुई कि वो गुलशन कुमार जी की तरह धर्म का प्रसार कर सके । प्रत्येक मानवतावादी को इस वास्तविक पटकथा को अवश्य देखना चाहिए जिससे पटकथा के निर्माता को ओर भी बल मिल सके एवम वो ऐसी सच्ची घटनाओं को समाज तक पहुचाने में ओर अधिक सक्षम हो सके ।