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उत्तर प्रदेश

साफ होगी निकाय चुनाव की तस्वीर हाई कोर्ट का फैसला आज

मामले में अगर सरकार के खिलाफ फैसला आया तो शहरी निकायों के चुनाव कुछ महीनों के लिए टाले आ सकते हैं इस बीच सरकार प्रक्रिया पूरी करके ओबीसी आरक्षण देने का रास्ता तय करेगी इसके अलावा इस मामले में सरकार के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का भी विकल्प रहेगा अगर याची के खिलाफ फैसला आता है तो वह भी सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के शहरी निकायों में चुनाव पर मंगलवार को तस्वीर साफ हो जाएगी, दरअसल इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच मंगलवार को निकायों में ओबीसी आरक्षण को लेकर दायर याचिका पर फैसला सुनाएगी, इस मामले में 24 दिसंबर को सुनवाई पूरी हो चुकी है जिस पर कोर्ट ने आर्डर रिजर्व कर लिया है और मंगलवार को यह सुनाया जाएगा ,

शहरी निकायों में ओबीसी को आरक्षण देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रक्रिया तय की थी ,इसे सभी राज्यों के लिए बाध्यकारी करार दिया गया था अब जबकि उत्तर प्रदेश में भी शहरी निकायों के चुनाव करवाने हैं तो उसके पहले शहरी निकायों के प्रस्तावित आरक्षण जारी किए गए थे ,इसमें सीटें ओबीसी के लिए भी आरक्षित की गई थी, याची वैभव पांडे ने ओबीसी आरक्षण को चुनौती दी थी, याची के वकील शरद पाठक ने बताया कि ओबीसी आरक्षण देने से पहले सरकार को जिस प्रक्रिया को अपनाना चाहिए था उस प्रक्रिया पर अमल नहीं किया गया है, जबकि दूसरी तरफ सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा है कि ट्रिपल टेस्ट की मूल भावना का पालन किया गया है ओबीसी आरक्षण देने के पहले निश्चित प्रक्रिया अपनाई गई थी दोनों ही पक्षों की दलीलों के बाद इस मामले में हाईकोर्ट ने आर्डर रिजर्व कर लिया था,

साल 2017 में 652 शहरी निकायों में चुनाव हुए थे 1 दिसंबर को चुनाव परिणाम आए थे और फिर शपथ ग्रहण के बाद 12 दिसंबर से अलग-अलग तारीखों में शहरी निकायों की पहली बैठक होना शुरू हुई थी ,चूंकि निकायों की पहली बैठक से 5 साल के लिए कार्यकाल होता है तो 12 दिसंबर 2022 से ही शरीर निकायों के कार्यकाल खत्म होना शुरू हो गए थे जहां जहां कार्यालय खत्म हो रहे हैं वहां की शहरी निकायों की कमान प्रशासकों के हवाले की जा रही है 24 जनवरी 2023 को सभी शहरी निकायों का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा फिर शासकों का कार्यकाल अधिकतम 6 महीने हो सकता है तो चुनाव टलते भी हैं तो 12 जून तक सरकार को चुनाव कराने ही होंगे,

 

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