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अंतर्राष्ट्रीय

एकल परिवार के लड़के हों या लड़किया सब कटटरपंथियो के निशाने पर – दिव्य अग्रवाल  

भावनात्मक रूप से कमजोर व् कम संख्या वाले परिवारों के बच्चे मजहबी जिहाद का सबसे पहले शिकार बनते हैं । केरल स्टोरी में आपने देखा होगा की जो लडकियां अपने परिवार की अकेली संतान हैं व् भावनात्मक रूप से पारिवारिक सदस्यों से दुरी बनाये हुए हैं उन्हें मजहबी जिहाद तुरंत निगल लेती है। क्यूंकि ऐसे बच्चे जिनका बदला लेने वाला या संघर्ष करने वाला परिवार में कोई नहीं होता उनको किसी भी षड्यंत्र में फसाना सबसे सरल है । प्रतिदिन सनातनी लड़कियां किसी न किसी प्रकार से इस मजहबी चंगुल में फस रही हैं इसका दोष सबसे पहले सनातनी समाज का है । माता पिता की स्थिति यह है की वो अपने बच्चो से सामाजिक चर्चा ही नहीं करते एवं बच्चा यदि किसी गलत कार्य में पड़ भी गया तो उसकी जानकारी माता पिता को देने वाले उस बच्चे का कोई अन्य भाई बहन भी नहीं हैं । इस्लाम की सबसे बड़ी ताकत है संगठित व् बड़ा परिवार। केरल स्टोरी में जिस प्रकार लड़कियों के साथ हुई वीभत्स सत्यता दिखाई गयी है आपको जानकार आस्चर्य होगा की एकल परिवार के लड़के भी जब इस तरह के कटटरपंथी जाल में फस जाते हैं तो उनकी भी यही दुर्दशा होती है अतः ज्यादा संतान व् भावनात्मक मजबूती ही सभ्य समाज के परिवारों को बचाने का मूल मंत्र है ।

 

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