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धर्म

उगते हुए सूर्य देव को किया गया दूसरा अर्घ्य अर्पित 

साकार हुई बिहार की संस्कृति

जयपुर : भगवान सूर्य का चार दिवसीय डाला छठ महापर्व का आज किशन बाग में दूसरा अर्घ्य अर्पित किया गया जिसमें महिला एवं पुरुष ने खड़े होकर पुरब की तरफ मुंह करके कमर भर पानी में भगवान सूर्य देव को आराधना और अस्ताचलगामी सूर्य देव को दूसरा अर्घ्य अर्पित किया गया ।

रात्रि में आतिशबाजी एवं संस्कृति कार्यक्रम आयोजन किया गया एनबीसी के पीछे दुर्गा विस्तार कॉलोनी में भव्य रूप से डाला छठ महापर्व आयोजित किया गया । आमेर में बिहार समाज की ओर से बड़ी संख्या में व्रतीयों ने अर्घ्य दिया।

बिहार समाज संगठन के महासचिव सुरेश पंडित ने ग्लोबल न्यूज 24×7 के मुख्य संपादक ओमप्रकाश गोयल को बताया कि रात्रि में कोसी भरने का परंपरा है जिसमें मिट्टी के हाथी कलश उस पर ढक्कन रखे पंचमुखी दीपक जलाकर पांच गाने को एक साथ बांध के खड़े की जाती है और महिलाएं छठ माता का गुणगान करती हैं, शाम के समय सूर्य को अर्घ्य देकर लोग अपने-अपने घर में या छत पर कोसी भरने की परंपरा निभाते हैं. इसके लिए सबसे पहले मिट्टी के हाथी को सिंदूर लगाया जाता है. कुछ लोग 12 दीपक जलाते हैं या फिर 24 दीपक भी जलाते हैं. फिर कलश में मौसमी फल और ठेकुआ, सुथनी और अदरक आदि के साथ सारी सामग्री रखी जाती है. इसके बाद कोसी पर दीपक जलाया जाता है. इसके बाद कोसी में दीपक जलाया जाता है. ।

इसके बाद कोसी के चारों तरफ सूर्य को अर्घ्य देने वाली सामग्री से भरी सूप, डलिया और मिट्टी के ढक्कन में तांबे के पात्र को रखकर फिर दीपक जलाते हैं. इसके बाद छठी मइया की पूजा की जाती है. इसके बाद इसी विधि के साथ आज सुबह को कोसी भरी जाती है जो घाट पर होती है मैथिली भोजपुरी वंचिका एवं मगही भाषा में लोकगीतों गाया गया। इसमें ठेकुआ प्रमुख प्रसाद होता है । प्रसाद के लिए केला संतरा गागर नींबू नाशपाती मूली अदरक कच्ची हल्दी पान फूल नारियल अक्षत सिंदूर आदि रख कर अर्ध्य अर्पित किया। केलवा के पात पर उगले सुरुज मल , उगहे सूरज देव अरघ के बेर। मारवो रे सुगवा धनुषा से सुगवा गिरे मुरझाए । जैसे ही दीनानाथ भगवान सूर्य की लालिमा दिखा, व्रतीयों ने अर्घ्य देना शुरू कर दिया। अर्घ्य अर्पित करने के बाद एक दूसरे को सिंदूर लगा कर सुहागिन होने कि आशीर्वाद एवं लम्बी उम्र की कामना किए । इसके बाद पारणा किया। इसी के साथ महापर्व सम्पन्न हुआ।

 

 

 

 

 

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