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लोक सभा- 2024

पारिवारिक कलह के चलते सीता सोरेन ने झाऱखंड मुक्ति मोर्चा के सभी पदों से इस्तीफा दे भाजपा की ज्‍वाइन

राजनीतिक हलचल: मंगलवार का दिन 2 सियासी परिवारों के लिए बड़ा अमंगलकारी दिख रहा है. केंद्रीय मंत्री और लोजपा नेता पशुपति पारस ने एनडीए में कोई सीट न मिलने और लोजपा चिराग गुट को तवज्जो मिलने को अपने साथ अन्याय बताते हुए रिजाइन कर दिया. दूसरी खबर रांची से आई है. सोरेन परिवार में भी कलह चरम पर पहुंच गई है. पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन ने झाऱखंड मुक्ति मोर्चा के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है और भाजपा ज्‍वाइन कर ली. ये पारिवारिक कलह केवल इन दो परिवारों तक ही सीमित नहीं है. पारिवारिक कलह का शिकार महाराष्‍ट्र ठाकरे और पवार परिवार भी हुआ है, और ऐसी ही कुछ बंगाल के बनर्जी परिवार से भी खबर आई. सवाल यह उठता है कि क्या ऐन लोकसभा चुनावों के समय इन परिवारों में उभरते कलह से किसका फायदा होने वाला है? एक सवाल यह भी है कि क्या इन परिवारों में कलह किसी रणनीति का हिस्सा है?

पशुपित पारस को हल्के में लेना खतरनाक

पासवान परिवार की लड़ाई में अकसर पशुपति पारस का शून्य के तौर पर आंकलन होता है. पर ऐसा नहीं है. चाचा भतीजे के झगड़े में नुकसान तो लोजपा के दोनों गुटों का होने ही वाला है. पशुपति का सामर्थ्य समझने के लिए हमे थोड़ा पासवान परिवार के इतिहास में जाना होगा. रामविलास पासवान अपने भाई राम चंद्र पासवान जो कि प्रिंस राज के पिता हैं, को केंद्रीय राजनीति में रखते थे,जबकि पशुपति पारस को वो अपने गृह क्षेत्र अलौली से विधायक बनवाते थे. ताकि उनके सहारे प्रदेश की राजनीति पर भी पकड़ बनी रहे. यही कारण था कि रामविलास राष्ट्रीय और पशुपति प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे. सन् 2000 में जब नीतीश सात दिन के सीएम बने तब उनके साथ सुशील मोदी और पशुपति पारस ही मंत्री बने थे. मतलब रामविलास के सियासी वारिस तब पारस ही थे. 2017 में भी जब नीतीश राजद का साथ छोड़ बीजेपी के साथ आए तो पारस फिर नीतीश सरकार में मंत्री बने थे.

रामविलास पासवान अपने छोटे भाई पशुपति को कितना मानते थे ये तब सामने आया जब 2019 में जब खुद राज्यसभा गए तो पशुपति को हाजीपुर की सेफ सीट दी. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि वो चाहते तो बेटे चिराग को हाजीपुर से सांसद बना सकते थे. रामविलास पासवान के निधन के बाद जब चिराग ने विधानसभा चुनाव में एनडीए से अलग होकर नीतीश के खिलाफ उम्मीदवार उतारने की रणनीति बनाई तो पारस नाराज हो गए. इस चुनाव में चिराग ने 143 उम्मीदवार उतारे इनमें से 45 ने जेडीयू उम्मीदवारों को हराने में अहम रोल निभाया.

जब चिराग बॉलीवुड में पैर जमाने की कोशिश कर रहे थे, तब पार्टी पारस ही चला रहे थे. ऐसे में पशुपति को कमजोर समझना भारी भूल होगी. यह कुछ वैसे ही चूक है जैसे उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने शिवपाल की उपेक्षा करके की थी. जिसका फल समाजवादी पार्टी आज तक भुगत रही है. जाहिर है कि दोनों अगर एक साथ रहते तो ज्यादा मजबूत होते. दोनों की आपसी लड़ाई का नुकसान लोजपा को भी हो सकता है. अगर पशुपति पारस महागठबंधन की ओर से हाजीपुर संसदीय सीट से चुनाव लड़ जाते हैं तो चिराग के लिए मुश्किल भी हो सकती है.

सोरेन परिवार की कलह से इंडिया गठबंधन को नुकसान

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की बहू और भ्रष्टाचार के मामले में जेल में बंद पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी विधायक सीता सरोने भी अपने परिवार से नाराज हैं. सीता सोरेन ने पार्टी के सभी पदों से रिजाइन कर दिया है. खबर आ रही है कि उन्होंने विधायकी से इस्तीफा दे दिया है. जाहिर है कि वो लोकसभा में अपने लिए उम्मीद तलाशेंगी और उनकी उम्मीदों को पंख लगाएगी एनडीए. सीता की नाराजगी उस समय से ही जब सोरेन परिवार का उत्तराधिकारी उन्हें न बनाकर हेमंत सोरेन को बना दिया गया था .

दरअसल परिवार के असली राजनैतिक उत्तराधिकारी सीता सोरेन के पति दुर्गा सोरेन थे. दुर्गा अपने पिता के साथ झारखंड आंदोलन में कदम से कदम मिलाकर चलते रहे. बाद में संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई. उसके बाद सीता सोरेन ने राज्य की राजनीति में कदम रखा. हेमंत सोरेन राजनीति के लिए अनिच्छुक बताए जाते थे. जिस तरह गांधी फैमिली में संजय गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी को जबरन राजनीति में आना पड़ा , कुछ वैसा ही हेमंत सोरेन के साथ हुआ.सीता सोरेन ने हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद चंपई सोरेन को सीएम बनाने का भी विरोध किया था. तब किसी तरह उन्हें मना लिया गया था. जाहिर है कि वो अगर एनडीए के साथ जाती हैं या या अलग रास्ता अख्तियार करती हैं तो झामुमो का नुकसान होना तय है . फायदा तो सिर्फ बीजेपी का ही दिखाई दे रहा है.

ठाकरे, पवार और बनर्जी परिवार में कलह

महाराष्ट्र में बाला साहब ठाकरे परिवार और शरद पवार के परिवार में कलह का फायदा भी बीजेपी ही उठा रही है. एनसीपी तो पारिवारिक कलह के चलते बंट चुकी हैं. शिवसेना में राज ठाकरे ने बहुत पहले ही अपनी राह अलग पकड़ ली थी. अब एनसीपी भी परिवार के विवाद में खत्म होने के कगार पर है. शिवसेना की आपसी लड़ाई का फायदा बीजेपी ने पहले ही उठाया है.आज भी अगर राज ठाकरे एनडीए में आ जाते हैं तो शिवसेना की खास सीटों पर उनके कैंडिडेट्स को लड़ाया जा सकता है. अब पवार परिवार की लड़ाई का मजा भी बीजेपी को आगामी लोकसभा चुनावों में भरपूर उठाना है. ऐसा ही कुछ पश्चिम बंगाल में देखने को मिल रहा है. वहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने भाई से बबून से नाराज हो गईं हैं. हाल ही में उन्होंने यहां तक बयान दिया कि उन्होंने अपने भाई से सभी तरह का रिश्ता तोड़ लिया है. उनके भाई ने भी निर्दलीय प्रत्य़ाशी के रूप में चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. बीजेपी हर कोशिश करेगी कि ममता बनर्जी के भाई की नाराजगी का हर संभव फायदा उठाया जाए.

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