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उत्तर प्रदेश

लोकसभा चुनाव में केजरीवाल की गिरफ्तारी के मायने

त्वरित प्रतिक्रिया :अंततः वह बहुप्रतीक्षित दिन आ ही गया। केजरीवाल को केंद्र सरकार के प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार कर लिया। कुछ चुटकीबाज कह रहे हैं कि भाजपा और मोदी का होली खेलने का यही स्टाइल है। प्रश्न यह है कि लोकसभा चुनाव के दौरान क्या एक निर्वाचित मुख्यमंत्री को इस प्रकार गिरफ्तार किया जाना चाहिए? कानून के दृष्टिकोण से इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है। क्या लोकतांत्रिक व्यवस्था के दृष्टिकोण से भी यह उचित है? इस प्रश्न का उत्तर सत्ताधारियों की इच्छा पर निर्भर करता है।राजनीतिक प्रतिशोध में अपने विरोधियों को निपटाने का यह अकेला और पहला उदाहरण नहीं है। अपने देश के अलावा भी न जाने कितने देशों और न जाने कितने नेताओं को राजनीतिक प्रतिशोध के तहत लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा है। जहां तक भ्रष्टाचार का प्रश्न है तो यह प्रश्न हर देश और काल में अपना अस्तित्व खो चुका है। प्रश्न यह नहीं है कि कौन भ्रष्ट है। प्रश्न यह है कि कौन भ्रष्ट नहीं है।अब से दस वर्ष पहले अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी जिस ईमानदारी के नाम पर सत्ता में आई थी,उसका मान नहीं रख पाई। शिक्षा, स्वास्थ्य के अच्छे कामों की आड़ में भरपूर धन अर्जित करने की चर्चाएं आम हैं। निःशुल्क बिजली, पानी के बदले शोहरत और राजनीतिक लाभ उठाते हुए अरविंद केजरीवाल और उनकी चौकड़ी यह भूल गयी कि राजनीति में असल लड़ाई पर्दे के पीछे से लड़ी जाती है। अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद नहीं छोड़ा है।वे जानते हैं कि ऐसा करना आत्मघाती होगा। उनकी गिरफ्तारी से भाजपा को तीन चौथाई लक्ष्य प्राप्त हो गया है। उनकी शीघ्र रिहाई की कोई संभावना नहीं है। लोकसभा चुनाव अगले ढाई महीने में संपन्न हो जाएंगे। दिल्ली और पंजाब इस दौरान अशांत रहेंगे। अशांति का लाभ कौन ले सकता है? यह प्रश्न भाजपा से पूछा जाना उचित होगा,

राजेश बैरागी (वरिष्ठ पत्रकार)

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