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अपराध

नहीं रहा मुख्तयार

गाजीपुर से राजेश बैरागी

आज मेरी अपने सुधी पाठकों से दो प्रश्न करने की इच्छा है।67,37 और 63 में कौन बड़ा है?दूसरा प्रश्न है कि मक्खी, मच्छर और इंसान में क्या अंतर है?इन दोनों प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए मैं सूक्ष्म स्वरूप में आज गाजीपुर में हूं। यहां मुहम्मदाबाद के कालीबाग कब्रिस्तान में कुछ लोग सुबह सुबह जमीन के एक हिस्से पर फीता डाल रहे हैं। नाप-जोख कर कोई ढाई गज भूमि की खुदाई शुरू की गई है। यह तैयारी उस व्यक्ति के लिए की जा रही है जिसकी हवश के सामने पूरी पृथ्वी ना कुछ थी।63 वर्ष के मुख्तयार अंसारी के 37 वर्ष जरायम को समर्पित रहे। उसके ऊपर कुल 67 मुकदमों की फेहरिस्त है। वह पिछले 18 बरस से जेल में बंद था।उसे आठ मुकदमों में आजीवन कारावास तक की सजा सुनाई जा चुकी थी। वह जेल में बैडमिंटन खेल सकता था और जेल में अपने लिए बनवाए गए विशेष तालाब से अपनी पसंद की मछली पकड़कर खा सकता था। उसके भय से डेढ़ वर्ष तक बांदा जेल के अधीक्षक की कुर्सी पर कोई अधिकारी बैठने को तैयार नहीं हुआ। उसने और उसके गुर्गों ने न जाने कितने लोगों को बेखौफ मार डाला। इंसान और मच्छर मक्खी का अंतर मिट गया।निजाम बदला तो उसे भय सताने लगा। वह भागकर पंजाब की जेल जा पहुंचा। उत्तर प्रदेश सरकार उसे जानवर की माफिक वहां से खींचकर लाई।उसे जेल में कैदी की भांति रखा गया। उसपर मुकदमों की कार्रवाई तामील कराई गई। वह आरोपी सिद्ध होने लगा।पत्नी,बेटा,बहू सब पर मुकदमे और ईनाम बुलने लगे।कल रात उसकी कारावास में ही मौत हो गई।यह दुनिया फानी है और सुपुर्द ए खाक सबको होना है। मगर कुछ लोगों को गुमान हो जाता है कि सबको मौत आएगी,बस उन्हें छोड़कर। मुख्तार का यह गुमान भी टूट गया,

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