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साहित्य उपवन

पूर्व नौकरशाह की रुसवाई

नोएडा प्राधिकरण के प्रथम मुख्य कार्यपालक अधिकारी सुशील चंद्र त्रिपाठी की गिनती उत्तर प्रदेश के शानदार नौकरशाहों में होती थी।वे प्रभावशाली व्यक्तित्व के स्वामी और मिलनसार स्वभाव के थे। एक समय तत्कालीन प्राधिकरण अध्यक्ष नीरा यादव ने उनके संबंध में कोई टिप्पणी की। सुशील चंद्र त्रिपाठी ने उनकी टिप्पणी पर सीधा प्रहार करते हुए एक राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र में लिखा कि मुझे आपकी भांति स्वर्ण कुल में पैदा होकर पिछड़ी जाति का होने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ।’ दरअसल नीरा यादव विवाह से पहले नीरा त्यागी थीं। सुशील चंद्र त्रिपाठी की कोरोना से 2021 में असमय मृत्यु हो गई। सेवानिवृत्ति के पश्चात वे सामाजिक कार्यों में सक्रिय थे। उनसे मेरी पहली मुलाकात नोएडा के बड़े सामाजिक संगठन नोएडा लोकमंच के कार्यालय में हुई। बाद में एक दिन मैं उनके सेक्टर 15 ए स्थित घर पर गया तो उनकी पत्नी श्रीमती किरण त्रिपाठी से भेंट हुई।वो एक आधुनिक सजग महिला के रूप में नजर आयीं। उन्होंने हमसे नोएडा पब्लिक लाइब्रेरी में अपने किसी परिचित की पुस्तक लगवाने की बात की। आज कुछ मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि उनका अपनी सबसे छोटी बेटी से संपत्ति को लेकर विवाद चल रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बेटी अपने पिता की चल अचल संपत्तियों पर अपने अधिकार को लेकर मां से कानूनी लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रही है और मां ने उसे जबरन गुरुग्राम के किसी अस्पताल में भर्ती करा दिया है। एक पूर्व नौकरशाह की पत्नी और बेटी का यह रिश्ता क्या कहलाता है? इस घर का मुखिया कभी इस शहर का भी मुखिया था। आज इस शहर में उसके मरणोपरांत उसकी संपत्तियों पर अधिकार को लेकर बेटी और पत्नी थाना और न्यायालय के रास्तों पर हैं। मैंने विचार किया कि त्रिपाठी जी ने जीवनभर में अपनी काबिलियत और पद के रसूख से जो कुछ भी अर्जित किया, क्या उसका सबब मां बेटी के बीच रिश्तों के पतन के लिए था। त्रिपाठी जी को अकाउंट की अच्छी समझ थी और राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं तथा बजट आदि में उनकी सलाह बहुत महत्व रखती थी। आज उनके अकाउंट को लेकर परिजनों में कोई समझ शेष नहीं है। हिंदी चलचित्र ‘खानदान’ के एक गीत के बोल बहुत प्रासंगिक हो गये हैं- मुझ को बर्बादी का कोई ग़म नहीं
ग़म है बर्बादी का क्यूँ चर्चा हुआ
राजेश बैरागी वरिष्ठ पत्रकार( लेखक व विचारक)
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