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सावधान कोरोना कुछ भी नहीं, ये दो बड़े संकट आने वाले हैं

नॉम चोम्स्की ने दी चेतावनी- कोरोना कुछ भी नहीं, ये दो बड़े संकट आने वाले हैं

वाशिंगटन. अमेरिकी भाषाविद और राजनीतिक विश्लेषक नॉम चोम्स्की ने दावा किया है कि कोरोना संक्रमण एक महामारी जरूर है लेकिन ये उन दो संकटों से काफी छोटा है, जो आने वाले हैं. डीआईईएम-25 टीवी से बातचीत में चोम्स्की ने कहा कि कोरोनोवायरस काफी गंभीर है लेकिन परमाणु युद्ध और ग्लोबल वार्मिंग वो दो संकट हैं जो मानव सभ्यता के विनाश का कारण बन सकते हैं. उन्होंने कहा कि जिस तरह के राजनीतिक और आर्थिक हालत हैं ये दोनों संकट अब दूर नज़र नहीं आ रहे हैं.

डीआईईएम-25 टीवी के लिए स्रेको होर्वाट से बातचीत में 91 वर्षीय नॉम चोम्स्की ने कहा कि यह सबसे चौंकाने वाली बात है कि कोरोना वायरस ट्रंप की सरकार के दौरान आया है और इसलिए अब ये और भी बड़ा खतरा नज़र आ रहा है. उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस भयानक है और इसके भयंकर परिणाम हो सकते हैं, लेकिन हम इससे उबर जाएंगे. लेकिन अन्य दो खतरों से उबर पाना नामुमकिन होगा. इनसे सब कुछ तहस-नहस हो जाएगा. अमेरिका के पास बढ़ती जा रही असीम ताकत आने वाले विनाश की वजह बनेगी.

अमेरिका और अन्य अमीर देशों ने नहीं ली जिम्मेदारी
डाउन टू अर्थ पत्रिका में छपे इस इंटरव्यू में चोम्स्की कहते हैं कि सबसे बड़ी विडंबना देखिए कि क्यूबा, यूरोप की मदद कर रहा है. लेकिन उधर जर्मनी ग्रीस की मदद करने के लिए तैयार नहीं है. कोरोना वायरस संकट लोगों को यह सोचने के लिए मजबूर कर सकता है कि हम किस तरह की दुनिया चाहते हैं. यह लंबे समय से पता था कि सार्स महामारी कुछ बदलाव के साथ कोरोना वायरस के रूप में सामने आ सकती है. अमीर देश संभावित कोरोना वायरस के लिए टीका बनाने का काम कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. बड़ी दवा कंपनियों ने इस पर काम करने नहीं दिया और अब जब ये आ गया है तो मनमाने ढंग से इसकी दवा और वैक्सीन का कारोबार किये जाएगा. जब कोरोना का खतरा सिर पर था तो बड़ी दवा कंपनियों को नई बॉडी क्रीम बनाना अधिक लाभदायक लग रहा था.
चोम्स्की ने आगे कहा कि अक्टूबर 2019 में ही अमेरिका को कोरोना जैसी संभावित महामारी की आशंका थी लेकिन किसी ने ध्यान देना ज़रूरी नहीं समझा. पोलियो का खतरा सरकारी संस्थान द्वारा बनाए गए टीके से खत्म हो गया लेकिन इसका कोई पेटेंट नहीं था और मुनाफे के चक्कर में बड़ी दवा कंपनियों ने ये होने भी नहीं दिया. उन्होंने कहा कि 31 दिसंबर को ही चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को निमोनिया के बारे में सूचित किया और एक हफ्ते बाद चीनी वैज्ञानिकों ने इसे कोरोनावायरस के रूप में पहचाना. फिर इसकी जानकारी दुनिया को दी गई. इस इलाके के देशों जैसे, चीन, दक्षिण कोरिया, ताइवान ने कुछ-कुछ काम करना शुरू कर दिया और ऐसा लगता है कि संकट को बहुत अधिक बढ़ने से रोक लिया.

जर्मनी ने भी सिर्फ अपने बारे में सोचा
चोम्स्की ने आरोप लगाया कि जर्मनी के पास एक विश्वसनीय अस्पताल प्रणाली है लेकिन उसने सिर्फ अपने हित के लिए इसका इस्तेमाल किया. सबसे खराब रवैया अमेरिका और ब्रिटेन का रहा जिन्होंने किसी देश की तरफ मदद का हाथ नहीं बढ़ाया. उन्होंने कहा कि यह मानव इतिहास का एक महत्वपूर्ण क्षण है. न केवल कोरोनावायरस की वजह से, जो दुनिया की खामियों के बारे में जागरुकता ला रहा है, बल्कि पूरे सामाजिक-आर्थिक प्रणाली की गहरी त्रुटियों के बारे में भी हमें इस वक्त पता चल रहा है. अगर हमें जीवन जीने लायक भविष्य चाहिए तो मौजूदा हालात को बदलना ही होगा. कोरोना संकट चेतावनी का संकेत हो सकता है और आज इससे निपटने या इसके विस्फोट को रोकने के लिए एक सबक हो सकता है.

हमें इसकी जड़ों के बारे में भी सोचना है, जो हमें आगे और अधिक बदतर हाल में ले जा सकते हैं. आज 2 बिलियन से अधिक लोग क्वारंटाइन हैं. सामाजिक अलगाव का एक रूप वर्षों से मौजूद है और बहुत ही हानिकारक है. आज हम वास्तविक सामाजिक अलगाव की स्थिति में हैं. किसी भी तरह, फिर से सामाजिक बंधनों के निर्माण के जरिए इससे बाहर निकलना होगा, जो जरूरतमंदों की मदद कर सके. इसके लिए उनसे संपर्क करना, संगठन का विकास, विस्तारित विश्लेषण जैसे कार्य करने होंगे. उन लोगों को कार्यशील और सक्रिय बनाने से पहले, भविष्य के लिए योजनाएं बनाना, लोगों को इंटरनेट युग में एक साथ लाना, उनके साथ शामिल होना, परामर्श करना, उन समस्याओं के जवाब जानने के लिए विचार-विमर्श करना, जिसका वे सामना करते हैं, और उन पर काम करना आवश्यक है.

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