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धर्मसाहित्य उपवन

Global News 24×7 Present-महाराजा अग्रसेन जयंती Special- Day 2

“महाराजा अग्रसेन जयंती” अश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन धूम धाम से महाराजा अग्रसेन की याद में मनाई जाती है। नवरात्रि के पहले दिन अग्रसेन जयंती के रूप में मनाया जाता है। सम्पूर्ण वैश्य समुदाय इनको बड़े हर्ष उल्लास से मनाता है।

अग्रोदयराज्य की स्थापना की कहानी

महाराज अग्रसेन अपनी रानी माधवी के साथ सम्पूर्ण भारत के भ्रमण पर निकल गये। वो किसी अनुकूल जगह अपना राज्य बनाना चाहते थे। वो ऐसी भूमी की तलाश में थे जो वीर और पवित्र भूमि हो। एक जगह उनको एक शेरनी अपने बच्चे को जन्म देती दिखी।

जन्म लेते ही बच्चे ने महाराजा अग्रसेन के  हाथी  को खतरा समझकर उनपर हमला कर दिया। अग्रसेन को यह एक शुभ संकेत लगा। उनको दैवीय संकेत लगा कि यह भूमी वीरता से भरी है। इसी जगह इन्होने अपने राज्य “अग्रोदय” की स्थापना।

Global News 24×7 Present-महाराजा अग्रसेन जयंती Special- Day 1

जिस जगह शेरनी के बच्चे का जन्म हुआ था उसे अपनी राजधानी “अग्रोहा” बना दिया। वर्तमान में यह स्थान हरियाणा के हिसार में स्तिथ है। अग्रवाल समाज इसे अपना “पांचवा धाम” मानता है और इसकी पूजा करता है। यहाँ पर सरकार ने “अग्रोहा विकास ट्रस्ट” की स्थापना की है।

महाराजा अग्रसेन के 18 गोत्र

महाराजा अग्रसेन ने अपने राज्य को 18 राज्यों में विभक्त किया। महर्षि गर्ग ने उनको 18 गणाधिपतियों के साथ 18 यज्ञ करने का परामर्श दिया। यज्ञों में बैठे इन 18 गणाधिपतियों के नाम पर ही अग्रवाल समाज के 18 गोत्रो की स्थापना हुई।

गोत्रों के नाम-

  1. ऐरन
  2. बंसल
  3. बिंदल
  4. भंदल
  5. धारण
  6. गर्ग
  7. गोयल
  8. गोयन
  9. जिंदल
  10. कंसल
  11. कुच्छल
  12. मधुकुल
  13. मंगल
  14. मित्तल
  15. नागल
  16. सिंघल
  17. तायल
  18. तिंगल
श्री अग्रसेन महाराज आरती

जय श्री अग्र हरे, स्वामी जय श्री अग्र हरे।
कोटि कोटि नत मस्तक, सादर नमन करें।। जय श्री।
आश्विन शुक्ल एकं, नृप वल्लभ जय।
अग्र वंश संस्थापक, नागवंश ब्याहे।। जय श्री।
केसरिया थ्वज फहरे, छात्र चवंर धारे।
झांझ, नफीरी नौबत बाजत तब द्वारे।। जय श्री।
अग्रोहा राजधानी, इंद्र शरण आये!
गोत्र अट्ठारह अनुपम, चारण गुंड गाये।। जय श्री।
सत्य, अहिंसा पालक, न्याय, नीति, समता!
ईंट, रूपए की रीति, प्रकट करे ममता।। जय श्री।
ब्रहम्मा, विष्णु, शंकर, वर सिंहनी दीन्हा।।
कुल देवी महामाया, वैश्य करम कीन्हा।। जय श्री।
अग्रसेन जी की आरती, जो कोई नर गाये!
कहत त्रिलोक विनय से सुख संम्पति पाए।। जय श्री!

महाराजा अग्रसेन जी की और अधिक जानकारी के लिए जुड़े रहे हमसे, हम कल फिर लौटेंगे भाग 3 के साथ

 

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