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उत्तर प्रदेश

मजहबी चरमपंथ सभ्य समाज के लिए काल न बन जाए -दिव्य अग्रवाल

कमलेश तिवारी की हत्या के पश्चात सर तन से जुदा के नारे को मजहबीयो द्वारा ऐसे क्रियान्वित किया गया कि आम जनमानस तो क्या बड़ी बड़ी व्यवस्थाओ ने भी इस कट्टरपंथ के आगे घुटने टेक दिए हैं।एक अहसास जिसको गैर मुस्लिम समाज के मन स्थापित किया जा रहा है कि लोकतंत्र से बड़ी चरमपंथियों की व्यवस्था है जिसके समक्ष सब कुछ बौना है ।

मुनव्वर फारूकी जैसे लोग भगवान राम एवम माता सीता पर अभद्र टिपणी करके भी अभिवियक्ति की आजादी का अभिप्राय बने हुए हैं एवम कुछ लोगो की गर्दन उतारने की तैयारी मात्र इसलिए कि जा रही है क्योंकि उनकी गलती मात्र इतनी है कि उन्होंने मजहबी पुस्तको में लिखित सत्य को कहने का साहस किया है ।

क्या वास्तव में क्षेत्रो , कस्बो , गाँव व मोहल्लों के साथ साथ अब देश का भी इस्लामीकरण होने जा रहा है जिसके चलते खुले आम लोगो की गर्दन उतारी जा रही हैं या उतारने की धमकियां दी जा रही हैं। क्या वास्तव में मजहबी भीड़ इतनी ताकतवर होती है जिसके चलते किसी व्यक्ति की जमानत के पश्चात दूसरे मुकदमो में पुनः गिरफ्तारी कर दी जाती है । इन व्यवस्थाओ को देखकर लगता है कि विगत कुछ वर्षों में राष्ट्र का सभ्य समाज भले ही राजनीतिक व लोकतांत्रिक रूप से शसक्त हुआ हो परन्तु धार्मिक रूप से शायद इतना कमजोर हो चुका है कि कभी भी मजहबी आतंक द्वारा उस सभ्य समाज को निर्ममता के साथ समाप्त किया जा सकता है । अतः यदि प्रत्येक मजहबी चरमपंथ की घटना को मात्र राजनीतिक चश्मे से देखा जाता रहा तो शायद ही इस राष्ट्र की अस्मिता व सभ्य समाज का संरक्षण सम्भव हो पाए।

दिव्य अग्रवाल
दिव्य अग्रवाल(राष्ट्रवादी लेखक व विचारक, गाजियाबाद)
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