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साहित्य उपवन

नमन मंच
दीवाली विशेष

 

मैं हूँ अवध मेरी मेरी ओर देखो,
मैं घी के दीपक जला रही हूँ।
मेरे श्रीराम आ रहे हैं
गली को रौशन बना रही हूं।
मैं घी के दीपक जला रही हूं

बरस बिरह के बिता लिये हैं
कि अब खुशी हैं पधारी घर में
है रंगो रौनक राजमहल में
है रंगोरौनक भरी नगर में
मेरे राम ,रघुनाथ,रमापति
शुभागमन गीत गा रही हूँ
मैं घी के दीपक जला रही हूं

मैं कौशिला हूं, सुमित्रा हूँ
मैं उर्मिला की प्रतीक्षा हूँ
मैं कैकेयी अनुतापरता हूँ
पापबोध ग्रस्त मंथरा हूँ
भरतभद्र के ह्रदय की आशा
की जोत हूं कपकंपा रही हूँ

वो अंजनीलाल आ गए हैं
संदेश लेकर मेरे प्रभु का
है सबके मन में उमंग आशा
ह्रदय प्रफुल्लित है हर किसी का
गली गली को सजा रही हूं
मैं खुद को उपवन बना रही हूं

गये थे तो बस राजकुंवर थे
श्री राम बनके आ रहे हैं
कृपानिधि,कारुन्यसिन्धु
आज भगवान बनके आ रहे हैं
अहोभाग्य आज हैं मेरे मैं
प्रसन्नता से अघा रही हूँ

संदेश आया शुभागमन का
कि राम सीता हैं आने वाले
अवधपुरी बन गई हिंडोला
नगर निवासी झुलाने वाले
वो उतरा पुष्पक किनारे सरयू
लहर का झूला झुला रही हूँ

मैं हूँ अवध मेरी ओर देखो
मैं घी के दीपक जला रही हूं
खुशी से मैं झूमे जा रही हूं
मैं रौशनी में नहा रही हूं
मैं मंगलाचार गा रही हूं
मैं ममता और प्यार गा रही हूं

गली गली घर सजा लिए हैं
सुन्दर चौके पुरा लिये हैं
हाट बाट सब सजा लिए हैं
मंगल बाजे बुला लिए हैं
पवन को चंदन बना दिया है
हरष दीवाली मना रही हूँ

धवल दीवाली मना रही हूँ
मैं घी के दीपक जला रही हूं

सीमा शर्मा स्वरचित एवं मौलिक

 

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